Book Title: Chitt aur Man
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 338
________________ ३२२ चित्त और मन पर अधिक ध्यान देने की जरूरत नहीं है। विचारों पर वे लोग ध्यान दें जो बाहर ही बाहर घूमते हैं । जो भीतर की यात्रा कर रहा है, भीतर में बैठा है उसे विचार पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है। हम भाव पर ध्यान दें, भाव को निर्मल करें। प्रश्न होगा कि भाव को कैसे निर्मल करें ? उसकी प्रक्रिया क्या है ? तन्त्रशास्त्र : महत्त्वपूर्ण प्रयोग भावों को निर्मल बनाने का सबसे सरल उपाय है रंगों का ध्यान करना । यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण उपाय है। चिकने रंगों का ध्यान भावों को निर्मल बनाने में उपयोगी होता है। पीला, लाल और सफेद-ये तीन रंग भाव-शुद्धि के कारण हैं। तन्त्रशास्त्र के विषय में लोगों में बहुत भ्रान्तियां हैं । भ्रान्तियां होने का कारण भी है कि तन्त्र के आधार पर भैरवीचक्र जैसी पद्धतियां चल पड़ीं और वाम-मार्ग प्रचलित हो गया किन्तु मैं मानता हूं कि तन्त्रशास्त्र ने साधना के महत्त्वपूर्ण प्रयोग प्रस्तुत किए। उन्हें हम शुद्ध आध्यत्मिक प्रयोग कह सकते हैं । कहीं कोई दोष नहीं, कहीं कोई त्रुटि नहीं । तन्त्रशास्त्र का एक प्रयोग है-पूरे शरीर को लाल सूर्य जैसे लाल रंग में देखें। छह महीने के इस प्रयोग से वीतरागता सिद्ध हो सकती है। तन्त्रशास्त्र का एक प्रयोग है-अपने शरीर को आकाश में स्थित देखें और शरद्-ऋतु की संध्या जैसे रंग का ध्यान करे। छह महीने तक ऐसा निरन्तर ध्यान करने पर वीतराग भाव घटित होने लगता है। महत्त्वपूर्ण चिकित्सा पद्धति . तन्त्रशास्त्र का एक प्रयोग है-नासाग्र पर स्वर्ण के रंग का या श्वेत वर्ण का ध्यान । यह प्रयोग करने से दूषित भावना से मुक्ति मिल जाती है। चेतना के विकास, इन्द्रिय जय, ज्ञानशक्ति और वीतरागता के अनेक प्रयोग तन्त्रशास्त्र ने प्रस्तुत किए। वे सारे महत्त्वपूर्ण प्रयोग लेश्या के सिद्धांत से संबद्ध हैं। रंगों का महत्त्व कम नहीं है । हमारे समूचे भाव-तन्त्र पर रंगों का प्रभुत्व है। रंगों के द्वारा शारीरिक बीमारियां मिटाई जा सकती हैं, मानसिक दुर्बलताओं को मिटाया जा सकता है और आध्यात्मिक मूर्छा को तोड़ा जा सकता है। लेश्या पद्धति आध्यात्मिक मूर्छा को मिटाने की महत्त्वपूर्ण चिकित्सा पद्धति है । दूषित भावों और विकृत विचारों द्वारा जो जहर शरीर में पैदा होता है, एकत्रित होता है, उसे बाहर निकालने की यह अभूतपूर्व पद्धति है। रंगों के ध्यान से या रंग चिकित्सा से संचित विष बाहर निकलते हैं, भाव तथा विचार निर्मल बनते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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