Book Title: Chitt aur Man
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 350
________________ २३४ चित्त और मन परमात्म-वर्शन भारतीय दर्शन में परमात्मा दर्शन की बहुत बड़ी चर्चा है । बहुत लोग कहते हैं कि परमात्मा का दर्शन हो । एक बहन ने कहा कि मुझे परमात्मा का दर्शन करना है। भगवान् का दर्शन करना है। मैंने कहा-कर सकती हो। उसने कहा-कैसे करूं ? परमात्मा बड़ा सूक्ष्म है, अतीन्द्रिय है। जिस व्यक्ति की अतीन्द्रिय चेतना जागृत नहीं होती, वह परमात्मा को कैसे देख सकता है ? परमात्मा को देखने की भी एक पद्धति है। यदि परमात्मा का दर्शन करना है तो अपना दर्शन करें। जिस क्षण में हमारे मन में हीनता या अहंकार की वृत्ति होती है, उस समय हमारा परमात्मा लुप्त हो जाता है, छिप जाता है। जिस क्षण में हमारी चेतना में समता का अनुभव होता है, उस समय परमात्मा जाग जाता है । ___ जैन आचार्यों ने जिस नमस्कार महामंत्र की चर्चा की, उसमें बहुत यथार्थ व्याख्या प्रस्तुत है । पांच परमात्मा हैं-अर्हत् परमात्मा, सिद्ध परमात्मा आचार्य परमात्मा, उपाध्याय परमात्मा और साधु परमात्मा। इतना व्यापक अर्थ दे दिया कि साधु यानी साधना करने वाला हर व्यक्ति परमात्मा है। जो व्यक्ति अपनी चेतना की साधना करता है, वह हर व्यक्ति परमात्मा है । साधना का सूत्र है समता । जिसने समता का मूल्यांकन किया है, जिसने समता को जीना सीखा है और इन राग-द्वेष की नथियों, हीनता और अहंकार से ऊपर उठकर समत्व का अनुभव किया है, वह हर व्यक्ति परमात्मा है । समता के क्षण का जो अनुभव करता है, वह परमात्मा का दर्शन करता है। समता का दर्शन परमात्मा का दर्शन है, आत्मा का दर्शन है। जो व्यक्ति सामायिक करता है, समता की साधना करता है, वह व्यक्ति परमात्मा की आराधना करता है, परमात्मा का अनुभव करता है। भावतंत्र का परिष्कार अग्रमस्तिष्क (फ्रंटल लॉब) कषाय या विषमता का केन्द्र है। अतीन्द्रिय चेतना का केन्द्र भी वही है । जैसे-जैसे विषमता समता में रूपान्तरित होती होती है वैसे-वैसे अतीन्द्रिय चेतना विकसित होती चली जाती है। उसका सामान्य बिन्दु प्रत्येक प्राणी में विकसित होता है। उसका विशिष्ट विकास समता के विकास के साथ ही होता है । मनुष्य के आवेगों और आवेशों पर हाइपोथेलेमस का नियंत्रण है। उससे पिनियल और पिच्यूटरी ग्लैण्ड्स प्रभावित होते हैं। उनका स्राव एड्रीनल ग्लैण्ड को प्रभावित करता है। वहां आवेश प्रकट होते हैं। ये आवेग अतीन्द्रिय चेतना को निष्क्रिय बना देते हैं। उसकी सक्रियता के लिए हाइपोथेलेमस और पूरे ग्रन्थितंत्र को प्रभावित करना आवश्यक होता है। ग्रन्थितंत्र का संबंध मनुष्य के भावपक्ष से हैं। भावपक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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