Book Title: Chitt aur Man
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 355
________________ अतीन्द्रिय चेतना ३३६ संभिन्न श्रोतो - लब्धि । जो व्यक्ति इस लब्धि से सम्पन्न होता है, उसकी चेतना का इतना विकास हो जाता है कि उसका समूचा शरीर कान, आंख, नाक, जीभ और स्पर्श का काम कर सकता है । उसके लिए कान से सुनना या आंख से देखना आवश्यक नहीं होता । वह शरीर के किसी हिस्से से सुन सकता है, देख सकता है । वह पांचों इन्द्रियों का काम समूचे शरीर से ले सकता है । उसके ज्ञान का स्रोत संभिन्न हो जाता है, व्यापक बन जाता है । समूचा शरीर संभिन्न हो जाता है, व्यापक हो जाता है । अतीन्द्रिय चेतना का प्रकटीकरण मनुष्य का स्थूल शरीर सूक्ष्मतर शरीर का संवादी होता है। सूक्ष्मतर शरीर में जिन क्षमताओं के स्पंदन होते हैं, उन सबकी अभिव्यक्ति के लिए स्थूल शरीर में केन्द्र बन जाते हैं । उसमें शक्ति और चैतन्य की अभिव्यंजना के अनेक केन्द्र हैं । वे सुप्त अवस्था में रहते हैं | अभ्यास के द्वारा उन्हें जागृत किया जाता है । अपनी जागृत अवस्था में वे 'करण' बन जाते हैं । 'करण' को विज्ञान की भाषा में विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र (एलेक्ट्रो मेग्नेटिक फील्ड) कहा जा सकता है । तंत्रशास्त्र और हठयोग में छह या सात चक्रों का सिद्धांत प्रतिपादित हुआ है । प्रतिपादन की प्राचीन शैली रूपकमय है अतः चत्रों के विषय में स्पष्ट कल्पना करना कठिन है । बहुत लोगों ने उन्हें किसी विशिष्ट अवयव के रूप में स्थूल शरीर में खोजने का प्रयत्न किया पर उन्हें अपनी खोज में कभी सफलता नहीं मिली । स्थूल शरीर में ग्रन्थियां हैं। शरीर शास्त्र के अनुसार उनका कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण है । उन्हें चक्र माना जा सकता है । चक्रों और ग्रन्थियों के स्थान भी प्रायः एक ही हैं। मूलाधार चक्र का किसी ग्रन्थि से सीधा संबंध नहीं है । स्वाधिष्ठान चक्र का काम ग्रन्थि ( गोनाड्स) से संबंध है । मणिपूर चक्र का एड्रीनल से, अनाहत चक्र का थाइमस से, विशुद्धि-: द्व-चक्र का थाइराइड से, आज्ञाचक्र का पिट्यूटरी से और सहस्रार चक्र का पिनियल से संबंध स्थापित किया जा सकता है । विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र जैन पराविद्या के अनुसार शक्ति और चैतन्य के केन्द्र अनगिन हैं । वे पूरे शरीर में फैले हुए हैं । उन्हें ग्रन्थियों तक सीमित नहीं किया जा सकता । ग्रन्थियों का काम सूक्ष्मतर या कर्मशरीर से आने वाले कर्म - रसायनों और भावों का प्रभाव प्रदर्शित करना है । अतीन्द्रिय चेतना को प्रकट करना उनका मुख्य कार्य नहीं है । वे अतीन्द्रिय चेतना की अभिव्यक्ति के लिए विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र बन सकते हैं अथवा उनके आसपास का क्षेत्र विद्युत् चुम्बकीयक्षेत्र बन सकता है । उनके अतिरिक्त शरीर के और भी अनेक भाग विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र बन सकते हैं इसलिए शक्ति केन्द्रों और चैतन्य - केन्द्रों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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