Book Title: Chitt aur Man
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 346
________________ ३३० होता है । तब आभामंडल धूमिल, विकृत और दूषित हो जाता है । सोवियत रूस के इलेक्ट्रॉनिक विशेषज्ञ सेमयोन किलियान तथा उनकी वैज्ञानिक पत्नी 'बेलेन्टिना' ने फोटोग्राफी की एक विशेष विधि का आविष्कार किया | उस विधि द्वारा प्राणियों और पौधों के आस-पास होने वाले सूक्ष्म विद्युतीय गतिविधियों का छायांकन किया जा सकता है । जब एक पौधे से तत्काल तोड़ी गयी पत्ती की सूक्ष्म गतिविधियों की फिल्म खींची गई तो आश्चर्यकारी दृश्य सामने आये । पहले चित्र में पत्ती के चारों ओर स्फुलिंगों झिलमिलाहटों और स्पंदी ज्योतियों के मंडल दिखाई दिये । दस घंटे बाद लिए गए छाया चित्रों में ये आलोक मंडल क्षीण होते दिखाई दिये । अगले दस घंटों के छायाचित्रों में आलोक मंडल पूरी तरह क्षीण हो चुके थे । इसका तात्पर्य है कि पत्ती की तब मोत हो चुकी थी । किलियान दम्पत्ति ने एक रुग्ण पत्ती की फिल्म उस विशेष विधि ATM खींची। उसमें आलोक मंडल प्रारंभ से ही कम था । वह शीघ्र ही समाप्त हो गया । किलियान दम्पित के उस विशेष विधि द्वारा अत्यंत निकट से मानव शरीर के छाया चित्र खींचे । उन छाया चित्रों में गर्दन, हृदय, उदर आदि अवयवों पर विभिन्न रंगों के सूक्ष्म धब्बे दिखाई दिये । वे उन अवयवों से विसर्जित होने वाली विद्युत ऊर्जाओं के द्योतक थे । लेश्या वनस्पति के जीवों में भी होती है। पशु-पक्षी तथा मनुष्य में भी होती है इसलिए आभामंडल भी प्राणीमात्र में होता है । विज्ञान के संदर्भ में आभामण्डल चित्त और मन ऑकल्ट साइन्स के पुरस्कर्ताओं ने ओरा के दो प्रकार बतलाए१. इमोशनल ओरा ( भावनात्मक आभामण्डल ) २. मेण्टल ओरा ( मानसिक आभामंडल ) - लेश्या के सिद्धान्त में भी ये दो शब्द मिलते हैं । लेश्या दो प्रकार की होती है। एक प्रकार की लेश्या का सम्बन्ध है कषाय से और दूसरी प्रकार की लेश्या का सम्बन्ध है योग से । 'कषायप्रवृत्तिरंजिता लेश्या' - लेश्या कषाय की प्रवृत्ति (उदय) से रंजित होती है और लेश्या योग के द्वारा संचालित होती है । लेश्या का सम्बन्ध दो आन्तरिक शक्तियों से है — कषाय से और योग से | योग- लेश्या मानसिक आभामंडल (मेंटल ओरा ) का निर्माण करती है, कषाय- लेश्या भावनात्मक आभामंडल ( इमोशनल ओरा ) का निर्माण करती है । इस प्रकार आभामंडल में दो तत्त्व काम करते हैं— मन और भावना । कषाय का स्रोत जितना तीव्र होता है, हमारी शक्तियां उतनी ही क्षीण होती हैं और तेजस शरीर दुर्बल बनता चला जाता है । चंचलता अधिक होता है, आभामंडल क्षीण होता जाता है । मन जितना सक्रिय रहेगा वाणी और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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