Book Title: Chaturvinshati Jinstavan Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Jain Shastramala Karyalay View full book textPage 6
________________ चतुर्विंशति जिनस्तवन. श्री अजितनाथ जिनस्तवन । सुणीयो जी करुणा नाथ नवदधि पार कीजो जी ॥ए देशी॥ तुमसुणीयो जी श्रजित जिनेस नवोदधि पार कीजो जी । तु ॥ आंकणी ॥ जन्म मरण जल फिरत अपारा । श्रादि अंत नही घोर अंधारा । हुँ अनाथ उरण्यो मऊधारा । टुक मुफ पीर कीजो जी। तुम ॥१॥ कर्म पहार कठन उखदा। नाव फसी अब कौन सहाई॥पूर्ण दयासिंधु जगवामी।फटती उधार कीजो जी। तुम ॥२॥ चार कषाय करस शतिनारे वरवा अनंग जगत सब जारे। जारे त्रिदेव इंड फुनदेवा । मोह उवार लीजो जी । तुम ॥३॥ करण पांच श्रति तस्कर नारे । धरम जहाज प्रीति कर फारे । राग फांस डारे गर मोरे । अब प्रनु फिरक दीजो जी। तुम ॥४॥Page Navigation
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