Book Title: Chaturvinshati Jinstavan Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Jain Shastramala Karyalay View full book textPage 5
________________ श्रीमद् विजयानंदसूरि कृत, सारी। अग्नि कोण सुखकारी रे ॥मना ज्योति . जवन वनदेवी निरते । इन पति व्यायव थिरतेरे ॥मन ॥३॥सुर नर नारी कूण ईशाने । प्रजु निरखी सुख माने रे । मन । तुल्य निमित्त चिहुं वर थाने । सम्यग दरसी जाने रे। मन॥४॥ आदि निषेपा तिग उपगारी। वंदक नाव विचारी रे। मन । वाग जोग सुन मेघसमानो।जव्य शिखी हरखानो रे । मन ॥५॥ कारण निमित्त उजागर मेरो । सरण गह्यो अब तेरो रे। मन । जगत वबल प्रनु जगत उजेरो । तिमिर मोहं हरो मेरो रे। मन ॥ ६॥ नगति तिहारी मुक मन जागी। कुमति पंथ दियो त्यागी रे। मन । बातमज्ञान नान मति जागी। मुफ तुफ अंतर नागी रे । मन ॥७॥ शति श्री ऋषन्न जिन स्तवनम् ॥Page Navigation
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