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(१०) तीन लोकका स्वरूप ।
सेवेया इकतीसा ( मनहर )। पूरव पच्छिम सात-नर्कतलें राजू सात,
आगें घटा मध्यलोक राजू एक रहा है। ऊंचै बढ़ि गया ब्रह्म लोक राजू पांच भया, - आघटा अंत एक राजू सरदहा है ॥ दच्छिन उत्तर आदि मध्य अंत राजू सात,
ऊंचा चौदै राजू पट द्रव्य भरा लहा है। असंख्यात परदेस मूरतीक कियौ भेस, - करै धरै हरै कौन स्वयंसिद्ध कहा है॥७॥
अर्थ-सांतवें नरकके नीचे ( जहां कि त्रस जीव नहीं हैं-निगोद जीव भरे हैं ) इस लोककी चौडाई पूर्व से पश्चिमतक सात राजू है । उससे ऊपर क्रमसे घटता गया है, सो मध्य लोकमें सुदर्शन मेरुकी जडमें केवल एक राजू चौडा रह गया है । आगे फिर विस्तृत हो गया है सो, ब्रह्म स्वर्गके अन्तमें पांच राजू होकर फिर घटने लगा है और अन्तमें सिद्धालयके ऊपर फिर एक राजू रह गया है । ( यह जगह २ की पूर्वसे लेकर पश्चिमतक चौड़ाई बतलाई गई । अब उत्तर दक्षिणकी मोटाई बतलाते हैं। ) आदि मध्य और अन्तमें सब जगह अर्थात् मूलसे लेकर लोकशिखरके अन्ततक सर्वत्र सात राजू मोटाई (उत्तरसे दक्षिण)
१ सात राजूकी ऊंचाई पर । २ नीचेसे साढ़े दश राजूकी ऊंचाईपर ।