________________
(८५)
प्रकृतियोंके घटानेसे शेष रहीं १०२, उनमें से नरकगत्यानुपूर्वी विना ( क्योंकि यह दूसरे गुणस्थानमें घटाई जा चुकी है ) शेषकी तीन आनुपूर्वी घटानेसे ( क्योंकि तीसरे गुणस्थान में मरण न होने से किसी भी आनुपूर्वीका उदय नहीं है ) शेष रहीं ९९ और एक सम्यग्मिथ्यात्वका उदय यहां मिला । इस तरह इस गुणस्थान में १०० प्रकृतियोंका उदय होता है । चौथे गुणस्थानमें 'सौ चौ' अर्थात् १०४ प्रकृतियोंका उदय होता है । ऊपरकी १०० प्रकृतियों में से व्युच्छि - नप्रकृति सम्यग्मिथ्यात्व के घटानेपर रहीं ९९, इनमें चार आनुपूर्वी और एक सम्यक्प्रकृति इन पांचके मिलाने से १०४ हुई। पांचवें गुणस्थानमें ८७ प्रकृतियोंका उदय होता
| पूर्वकी १०४ प्रकृतियोंमेंसे अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, देवायु, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, नरकायु, वैक्रियक शरीर, वैक्रियक अंगोपांग, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, दुर्भग, अनोदय और अयशःकीर्ति इन सत्तरह व्युच्छिन्न प्रकृतियोंके घटानेसे ८७ रहती हैं । छट्ठे गुणस्थानमें ८१ प्रकृतियोंका उदय होता है । पिछली ८७ मेंसे प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, तिर्यग्गति, तिर्यगायु, उद्योत और नीचगोत्र इन आठ व्युच्छिन्न प्रकृतियोंके घटानेसे शेष रहीं ७९, इनमें आहारक शरीर और आहारक अंगोपांग - मिलाने से ८१ प्रकृतियां होती हैं । सातवेंमें ७६ प्रकृतियोंका उदय होता है । पिछली ८१ मेंसे आहारक शरीर, आहारक