________________
(१००)
होता है, उतना भरतक्षेत्र है । यह एक भाग ५२६ योजन और छह कला (अपूर्ण उन्नीस) के बराबर है । भरतक्षेत्रका आकार धनुष सरीखा है । इसके उत्तरमें हिमवान नामका पर्वत है । वह १९० मेंसे दो भाग प्रमाण है । अर्थात उसका दक्षिण उत्तर विस्तार भरतक्षेत्रसे दूना १०५२ योजन १२ कला (बारह अपूर्ण उन्नीस) है । हिमवानसे आगे (उत्तरमें ) हैमवत क्षेत्र है । वह चार भाग प्रमाण अर्थात् २१०५ योजन और ५ कला है । उसके आगे महाहिमवान पवत आठ भाग प्रमाण ४२११० योजन है । महाहिमवानसे उत्तरमें (आगे) हरिक्षेत्र है, वह सोलह भाग प्रमाण ८४२१० योजन है । आगे निषधपर्वत है, वह बत्तीस भाग प्रमाण अर्थात् १६८४२२ योजन है । इस तरह लवणसमुद्रसे विदेह क्षेत्रतक सब मिलाकर ६३ भाग ३३१५७१९ हुए । इतना.ही विस्तार मेरुसे उत्तरकी ओर विदेहसे लवण समुद्रतक समझना चाहिये । दोनोंका जोड़ हुआ १२६ भाग प्रमाण । अब रह गया बीचका विदेहक्षेत्र, सो उसका दक्षिण उत्तर विस्तार १९० में ६४ भाग प्रमाण अर्थात् ३३६८४४ है । तब ६३+६३+६४=१९० या ३३१५७१६,३३१५७१७३३२६८४५५१००००० योजन हो गये । एक भाग ५२६ योजन ६ कलाका होता है। एक योजनकी १९ कला मानी हैं । जम्बूद्वीपमें वीतराग देवके ७८ अकृत्रिम चैत्यालय हैं । उन्हें निरन्तर मस्तक नबाना चाहिये-नमस्कार करना चाहिये।