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. (१०२) आठ घटती हुई चली गई है, सो अन्तके पटलमें चार बिल रह गये हैं । इस अन्तके पटलका नाम अप्रतिष्ठान इन्द्रक है। इसकी विदिशाओंमें बिल नहीं हैं, चार दिशाओंमें ही एक एक बिल है । इन सब उनचासों पटलोंके बिलोंकी संख्या ९६०४ है और उनका विस्तार असंख्यात योजन है । जो जीव दयाभाव धारण करते हैं और धर्म करते हैं, . वे इन नरकोंके महान् दुःखोंसे बचते हैं ।
ऊर्ध्वलोकके श्रेणीबद्ध विमान। ऊरध तिरेसठ पटल कहे आगममें, त्रेसठ ही इंद्रक विमान बीच जानिए । पहलौ जुगल ताके पहलेको रिजु नाम, जाकी चार दिसा सेनि बासठ प्रमानिए ॥ चारौं दोसै अड़तालीस आगें घटे चारि चारि. अंत रहे चारि ऊंचे चारि ठीक ठानिए। सेनीबंध ठत्तर सै सोलै जोजन असंख, सिद्ध बारै जोजनपै ध्यानमाहिं आनिए॥७२॥
अर्थ-ऊर्ध्वलोकमें अर्थात् स्वर्गोंमें ६३ पटल हैं । प्रत्येक पटलके बीचमें एक एक इंद्रक विमान है । अर्थात् इन्द्रक विमानोंकी संख्या भी ६३ है । पहले जुगलके अर्थात सौधर्म ईशान स्वर्गके ३१ पटल हैं। उनमेंके पहले पटलका