Book Title: Charcha Shatak
Author(s): Dyanatray, Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 148
________________ (१३५) पहले जो ३४ भाव कहे हैं उनमें कुछकी उत्पत्ति तो कर्मोदयसे, कुछकी क्षयोपशमादिसे तथा कुछकी स्वाभाविक होती है अर्थात् उनमें कर्मकी क्षयोपशमादि किसी अवस्था विशेषकी आवश्यकता नहीं पड़ती और उनका वर्णन ऊपर ऊपरके गुणस्थानोंमें उनकी व्युच्छित्ति दिखानेके लिये किया गया है । दोनों जगह इन भावोंके जुदा जुदा कहनेका यही प्रयोजन है। चौदह गुणस्थानोंमें त्रेपन भाव । ___ कवित्त (३१ मात्रा)। चौतिस बत्तिस तेतिस छत्तिस, इकतिस इकतिस इकतिस मान । अट्ठाइस अट्ठाइस बाइस, बाइस बीस बारमैं थान ॥ चौथै तेरै अंतिम थानक, ___पंच भाव सिद्धाले जान । सम्यक ग्यान दरस बल जीवत, निहचैसों तू आप पिछान ॥ ९२ ॥ अर्थ-जीवोंके जो ५३ भाव हैं, वे चौदह गुणस्थानों में क्रमसे इस प्रकार होते हैं:-पहले गुणस्थानमें ३४, दूसरेमें ३२, तीसरे ३३, चौथेमें ३६, पांचवेंमें ३१, छठेमें ३१, सातवेंमें .३१, आठवेंमें २८, नवमें २८, दशमें २२, ग्यारहवेंमें २२, बारहवेंमें २०, तेरहवेंमें १४ और चौदहवेंमें

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