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जोड़ने से १६ प्रकृतियां अघातिया कर्मोंकी होती हैं । इनमें घातिया कर्मोंकी ४७ प्रकृतियां (५ ज्ञानावरणी, ९ दर्शनावरणी, २८ मोहनी, ५ अन्तराय) मिलाने से ६३ प्रकृतियां होती हैं । इन सबका नाश करके तीर्थंकर केवलज्ञानमय ज्योतिके धारण करनेवाले हुए हैं । ये ही तीर्थंकर भगवान् देवों के देव अरहंत और परम पूज्य हैं इनकी प्रतिमाका पूजन करनेसे उच्च गोत्रका बन्ध होता है अर्थात् प्रतिष्ठित कुलों में जन्म मिलता है।
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चारों गतियोंमें कौन कौन और कितनी कितनी प्रकृतियों का बन्ध होता है ?
औदारिक दोय आहारक दोय नर्क देव, गति आव आनुपूरवी दसौं बखानी हैं । विकलत्रै सूच्छम साधारन अपर्जापत, सो विन सत चार देवकें प्रवानी हैं | एकेंद्री थावर आतप तीन प्रकृति विना, नर्क एक सत एक बंधजोग जानी हैं। तीर्थंकर आहारक बिना पसू सौ सतरै, नरकें बीसासौ सब नारौं सिवानी हैं ॥ ९८ ॥ अर्थ-आठ कर्मोंकी १२० प्रकृतियां बन्धयोग्य हैं । इनमेंसे देवगतिमें १ औदारिक, २ औदारिक अंगोपांग, ३ आहारक, ४ आहारक अंगोपांग, ५ नरक गति, ६ देव गति, ७ नरकगत्यानुपूर्वी, ८ देवगत्यानुपूर्वी, ९ नरक