Book Title: Charcha Shatak
Author(s): Dyanatray, Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 141
________________ (१२८) नहीं लेता है । सूक्ष्म जीव जो कि छह प्रकारके हैं, उनका रंग कापोत अर्थात् कबूतर सरीखा होता है । विग्रहगतिमें जो कार्माण शरीर होता है, उसका रंग सफेद समझना चाहिये । विपुलमनःपर्यय ज्ञान, परमावधि ज्ञान और सर्वावधि ज्ञानके धारक मुनि निश्चयपूर्वक मोक्षको पाते हैं-वे तद्भवमोक्षगामी होते हैं, इसलिये मैं उन्हें नमस्कार करता हूं। सात नरकों और सोलह स्वर्गों का आवागमन । साततै निकसि पसु, छठे नर व्रत नाहिं, पांचे महाव्रत चौथेसेती मोख सार है । तीजे दूजे पहलेतें आय जिनराय होय, भौनत्रिक सुरग दोय एकेंद्री धार है ॥ बारहवें स्वर्गसेती पंचइंद्री पसु होय, ऊपरकौं आयौ एक नरको औतार है । दक्खेंद्र सुधर्मरानी लोकपाल लोकांतिक, सर्वारथसिद्धि मोख लहै, नमोकार है ॥८८॥ अर्थ-सातवें नरकसे निकलकर जीव क्रूर पंचेन्द्रिय पशु होता है-मनुष्य नहीं होता है । छठे नरकसे निकलकर जीव मनुष्य तो हो जाता है। परन्तु महाव्रत धारण नहीं कर सकता है । पांचवेंसे निकलकर मनुष्य होता है और महावत भी धारण कर सकता है। परन्तु समस्त कर्मोका क्षयकर मुक्त नहीं हो सकता है । चौथे नरकसे निकलकर

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