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(९८) हजार योजनमें है । इस तरह मेरु और दोनों भद्रशालवनोंका विस्तार मिलाकर ५४ हजार योजन हुआ । इसको एक लाखमेंसे घटाया, तो बाकी छियालीस हजार योजन रहे । इनमें तेईस तेईस हजारके दोनों विदेह हैं । इस तरह जम्बूद्वीपका एक लाख योजन पूर्व पश्चिम विस्तार है ।
अब भद्रशाल वनसे लवणसमुद्रके तटतक जो विदह क्षेत्र है, उसका विशेष वर्णन करते हैं:-विदेह क्षेत्रमें लवण समुद्रके तटके लगा हुआ देवारण्य वन है, जो २९२२ योजनका है । और तीन नदियां हैं, जो प्रत्येक एकसौ पच्चीस पच्चीस योजनकी हैं। तीनों मिलाकर ३७५ योजनकी हैं। चार वक्षारगिरि नामके पर्वत हैं, जो दो हजार योजनके हैं अर्थात् प्रत्येक पांच पांचसौ योजनका है । आठ विदेह क्षेत्र हैं, जिनका विस्तार १७७०३ योजनका है । प्रत्येक क्षेत्र २२१२५ योजनका है । इस पूर्व विदेहके वन, नदी, पर्वत और क्षेत्रोंकी चौड़ाईका जोड़ तेईस हजार योजन होजाता है।
इसी तरह पश्चिम विदेहकी भी रचना है । नदी पर्वतादिकोंका विस्तार सब ऐसा ही है । नामादिका भेद है । नीलवन्त पर्वतपर केसरी नामका इद (तालाब ) है । उसमेंसे सीता नदी दक्षिणमुख होकर निकली है । वह माल्यवंत गजदन्त पर्वतमेंसे होकर, सुदर्शनमेरुका आधा चक्कर देती हई, पूर्ववाहिनी होकर, पूर्व विदेहके बीचमेंसे लवणसमुद्रमें