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अभावना, छहलेश्या-कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म, शुक्ल, पांच व्रत-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, परिग्रहत्याग, पांच समिति-ईयो, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपणा, प्रतिष्ठापना, पांच चारित्र-सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय, यथाख्यात, पांच गति-नरक, देव, मनुष्य, तिर्यंच, मोक्ष, पांच ज्ञान-मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय, और केवल इन सब बातोंपर जो श्रद्धान करना, प्रतीत करना, और मनमें रुचि धारण करना है, वही मुक्तिका मूल सम्यग्दर्शन है । उन सर्वज्ञ देवके चरणोंको मैं मस्तकपर हाथ रखके नमस्कार करता हूं, जिन्होंने ये सब बातें बतलाई हैं।
१९९॥ लाख कुलकोड़का ब्योरा।
सवैया इकतीसा । पृथ्वीकाय बीस दोय जल सात तेज तीनि, - वायु सात तरु बीस आठ परमानिए । वे ते चउ इंद्री सात आठ नव खग बारै, ___ जलचर साढ़े बारै चौपे दस जानिये ॥ सरीसृप नव नारकी पचीस नर चौदै,
देवता छबीस लाख कुल कोरि मानिए । दोय कोराकोरीमाहिं आध लाख कोरि नाहिं,
सबकौं निहारिकै दयाल भाव आनिए॥३२॥