Book Title: Charcha Shatak
Author(s): Dyanatray, Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ (२२) अर्थ-लोकके तलेसे लेकर एक राजूकी ऊंचाई तक अर्थात् निगोद तक तीनों वातवलयोंकी मुटाई साठ हजार योजन है, अर्थात् प्रत्येक वातवलय बीस बीस हजार योजन मोटा है । इसके आगे अर्थात् ऊपर मध्यलोक तक पहला वातवलय सात योजनका, दूसरा पांच योजनका और तीसरा चार योजनका है । इस तरह तीनों वातवलय मध्यलोक तक सोलह योजन मोटे चले आये हैं । मध्यलोककी बंगलोंमें पहला पांच योजनका, दूसरा चारका और तीसरा तीन योजनका है । तीनों मिलकर १२ योजन मोटे हैं। मध्यलोकसे ऊपर पांचवें ब्रह्मस्वर्ग तक घनोदधिवात सात. योजनका, घनवात पांच योजनका और तनुवात चार योजनका है । .तीनों मिलकर सोलह योज़न मोटे हैं । आगे पांचवें स्वर्गसे ऊपर लोकके अन्त तक पहला कातवलय पांच योजनका, दूसरा चारका और तीसरा तीन योजनका. है । तीनों बारह · योजनके हैं । लोकके सिरपर चक्रके 'आकार घनोदधिवातकी · मोटाई दो कोसकी, घनवातकी एक कोसकी और तनुवातकी पौने सोलहसौ धनुषकी है। इन १५७५ धनुषके पन्द्रहसौ भाग करनेसे अन्तका जो. १ वातवलय एक प्रकारकी वायुके पुंज हैं, जो समस्त लोकको घेरे हुए हैं, और जिनके आधारसे लोक आकाशमें ठहरा हुआ है । सब लोक पहले घनोदधि । वातवलयसे वेष्टित है । इस वातवलयमें जलमिश्रित वायु है । इस वातवलयको दूसरे घनवातवलयने वेढ रक्खा है । इसमें सघन वायु है और इसे तीसरे तनुवातवलयने बेड रक्खा है, जो कि हलकी वायुका पुंज है। .

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166