Book Title: Chandani Bhitar ki
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 154
________________ १४० चांदनी भीतर की बहुत कठिन है इन परिस्थितियों में सम रहना । जिस व्यक्ति की आंतरिक चेतना जाग जाती है, प्रज्ञा जाग जाती है, वही इन स्थितियों में सम रह सकता है। जिसकी प्रज्ञा स्थित हो जाती है, वही इस प्रकार का जीवन जी सकता है। अतीत में लौटें मृगापुत्र समत्व की उत्कृष्ट भूमिका में चला गया। जातिस्मृति से वैराग्य और समता का प्रारंभ हुआ और वह पूर्णता की अनुभूति में बदल गया। इसके बीच अनेक उतार-चढ़ाव आए, बाधाएं आईं, भय और प्रलोभन आए लेकिन मृगापुत्र को ये स्थितियां छू ही नहीं पाई। इसका कारण था--मृगापुत्र ने भावना योग से अपने आपको भावित कर लिया। कोरा एकाग्रता या ध्यान उतना काम का नहीं होता, जितना वह भावना से जुड़कर बनता है। ध्यान शतक में साधक की बहुत सुन्दर अर्हता दी गई है-जो भावना से प्रभावित है, वह ध्यान का अधिकारी है। ज्ञान-भावना, दर्शन-भावना, चरित्र-भावना, वैराग्य-भावना-ये भावनाएं जिसके पुष्ट बन गई, वस्तुतः ध्यान करने का अधिकारी वही है। मृगापुत्र ने इन भावनाओं से अपने आपको भावित कर लिया और उसने वह उपलब्ध कर लिया, जिसके लिए संकल्पबद्ध बना था। एवं नाणेण चरणेण दसणेण तवेण य। भावनाहि य सुद्धाहिं, सम्म भावेत अप्पयं।। मृगापुत्र का यह प्रकरण प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरक है। यदि हम अतीत में लौटने का प्रयत्न करें तो हमारा अतीत और भविष्य--दोनों उज्जवल हो सकते हैं। हमारे हाथ में वह सूत्र आ सकता है, जो वर्तमान का मार्ग-दीप बन जाए, भविष्य का आलोक-स्तंभ बन जाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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