Book Title: Chandani Bhitar ki
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 191
________________ असहयोग का नया प्रयोग १७७ से नफरत करते हैं। ऐसा काव्य, जैसा मेघदूत है, जैन कवि कभी नहीं रच सकता। यदि जैन मुनि ऐसा काव्य लिख दे तो शायद जैन समाज उसे मानने के लिए तैयार ही न हो। इस स्थिति में जैन कवि क्या करते ? एक कहावत चल पड़ी-यदि शिव पार्वती न होते तो वैष्णव कवि क्या करते और यदि अरिष्टनेमि-राजीमती न होते तो जैन कवि क्या करते। इस विषय पर विशाल साहित्य रचा गया है। उसमें बहुत कुछ अनजाना रहा। कुछ विद्वानों के प्रयत्न से उस साहित्य की सूचियां बन गई और वह साहित्य प्रकाश में भी आया। हृदयस्पर्शी चित्रण __यह बहुत विशिष्ट प्रसंग है-अरिष्टनेमि चले गए, उस समय राजीमती की स्थिति का जो चित्रण किया गया है, वह मेघदूत की अनुकृति सा बन जाता है। यक्ष ने अपना संदेश मेघ के माध्यम से प्रेषित किया और राजीमती ने न जाने किन किन का आश्रय लिया। इस पर एक सुन्दर काव्य लिखा जा सकता है और जिसमें अनेक तत्त्वों का हृदयस्पर्शी चित्रण किया जा सकता है। जैन परंपरा की साहित्य विधा में यह एक अनूठा प्रयोग है। इस सचाई से इन्कार नहीं किया जा सकता--तब तक कोरा सिद्धान्त ग्राह्य नहीं बनता, गले नहीं उतरता, जब तक उसके साथ साहित्यिक सरसता का योग नहीं होता। सरसता बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। एक प्रकार से अहिंसा और करुणा का व्यावहारिक रूप है सरसता । काव्य को सरस बना दिया जाए, उसमें कठोरता न रहे। क्रूरता का व्यावहारिक रूप है कठोरता। महाभारत लिखा गया किन्तु लिखने वालों ने इतनी सरसता के साथ लिखा कि पढ़ने में रस आता है, बात सीघी गले उतर जाती है। यदि वही बात धमाके के साथ कही जाए तो ऐसा लगेगा--खीर में मूसल डाल दिया गया है। व्यक्ति बात सुनते ही चमक जाता है, गले उतरने की बात कहीं रह जाती है। आदर्श हैं अरिष्टनेमि उत्तराध्ययन सूत्र की यह विशेषता है कि इसमें तथ्य को सरसता से समझाया गया है। यह कथा--सृजन का भी आधार सूत्र है। इसके आधार पर अनेक काव्यों का सृजन और प्रणयन किया जा सकता है। हिन्दी और संस्कृत में काव्य बनाए जा सकते हैं, उन्हें काफी विकास दिया जा सकता है। दस से अधिक काव्य बनाने की वस्तु-सामग्री उत्तराध्ययन में विद्यमान है। अपेक्षा है कथावस्तु को हृदयगम करने की, उसे काव्यात्मक रूप देने की और सरसता के ढांचे में ढालने की। इस संदर्भ में अरष्टिनेमि का प्रसंग बहुत मार्मिक और हृदयग्राही है। इस कथावस्तु में इतने घुमाव हैं कि उसके आधार पर अनेक तथ्यों की सरस अभिव्यक्ति संभव बन सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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