Book Title: Chandani Bhitar ki
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 198
________________ १८४ चांदनी भीतर की जवाब दिया-महाराज ! जब मैं घर से चला तब पत्नी ने कहा था-भीड़भाड़ में मत फंस जाना। पूर्व के खेमे की और बहुत भीड़ थी इसलिए मैं वहां नहीं गया। राजा यह सुनकर अवाक् रह गया। संचालित हैं वृत्तियों से यह कथा बहुत मार्मिक है। कौन व्यक्ति ऐसा है, जो अपनी वृत्तियों और वासनाओं के द्वारा संचालित नहीं है । यह संभव है- बहुत सारे व्यक्ति ऐसे मिल सकते हैं, जो स्त्रियों के द्वारा संचालित न हो किन्तु अपनी वृत्तियों और वासनाओं से संचालित न हो, ऐसे व्यक्ति का मिलना कठिन है। वही व्यक्ति ईश्वर हो सकता है, जो इनके द्वारा संचालित नहीं है। राजीमती ने कहा--आप इस प्रकार का आचरण करेंगे तो श्रामण्य के ईश्वर नहीं रहेंगे। जब श्रामण्य के ईश्वर नहीं हैं तब श्रामण्य का बोझ ढोने की जरूरत क्या है? राजीमती के इस तर्क से रथनेमि की चेतना प्रकपित हो उठी। वे संभल गए। संभले ही नहीं, कैवल्य को उपलब्ध हो गए। राजीमती के तर्क बहुश्रुतता के परिचायक थे। बहुश्रुतता के साथ राजीमती का जो संकल्प था, वह भी बहुत विलक्षण था। राजीमती की दृढ़ता रथनेमि ने राजीमती से कहा--चलो ! हम फिर राज्य में चलें, गृहस्थी में रहें, मनोरम भोगों को भोगें। कालान्तर में फिर मुनि बन जाएंगे। तुम देखो-कैसा वैभव है ! कैसा ऐश्वर्य है ! पहले उसका उपभोग कर लें। इस स्थिति में राजीमती ने जिस धृति और दृढता का परिचय दिया, वह सचमुच प्रेरक है। राजीमती ने कहा- मुनिवर ! आप यह क्या कह रहे हैं, क्या आप रूपवान् होने के कारण ऐसा कह रहे हैं ? यदि आप रूप से वैश्रमण हैं तो भी आपकी मुझे कोई जरूरत नहीं है। यदि आप वैभव या ऐश्वर्य से नलकुबेर हैं तो भी मुझे आपकी कोई आवश्यकता नहीं है। मैं आपकी स्वप्न में भी इच्छा नहीं कर सकती। यदि आप साक्षात् इन्द्र हैं तब भी आप मेरे लिए कोई काम के नहीं हैं। जइ सि स्वेण वेसमणो, ललिएण नलकूबरो। तहा वि ते न इच्छामि, जइ सि सक्खं पुरन्दरो। क्या नारी दुर्बल है ? राजीमती के संकल्प और मनोबल का निदर्शन हैं ये वाक्य। कौन कहता है--नारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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