Book Title: Chandani Bhitar ki
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 199
________________ रूपान्तरण १६५ कमजोर होती है, दुर्बल और अबला होती है ? वह दुर्बल नहीं है। बल सबमें है, पराक्रम और पुरुषार्थ सबमें है। प्रश्न है जागरण का। स्त्री और पुरुष में कुछ भी अंतर नहीं है। अंतर केवल दिशा का है। हम केवल शरीरशास्त्रीय दृष्टि से ही विचार न करें। योग के प्राचीन आचार्यों ने जो चिन्तन दिया है, अर्द्ध, नारीश्वर की जो कल्पना की है, वह बहुत रहस्यपूर्ण है। दक्षिणांग और वामांग की स्वीकृति बहत महत्त्वपूर्ण है। स्त्री और पुरूष में अंतर इतना ही है कि स्त्री की शक्ति का स्रोत है बायां अंग और पुरुष की शक्ति का स्रोत है दक्षिण अंग। अगर स्त्री अपनी वामांग शक्ति को पहचान सके तो वह पुरुष से कम नहीं है। यदि पुरुष अपने दक्षिण अंग की शक्ति को पहचान सके तो वह स्त्री से कम नहीं है। पुरुष भी स्त्री बन जाता है और स्त्री भी पुरुष बन जाती है। सवाल है अपनी-अपनी शक्ति को पहचानने का। प्रकृति की रचना ही ऐसी है कि दक्षिण और वाम-दोनों अंग समान नहीं मिलते। व्यक्ति को अपनी ही दोनों आंखों से समान दिखाई नहीं देता। दोनों एक साथ खुलती हैं तो पता नहीं चलता। यदि एक आंख को बंद कर देखें तो ऐसा लगता है-सामने अंधेरा ही अंधेरा है। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिन्हें दोनों कानों से बराबर सुनाई नहीं देता। एक कान ठीक काम करता है, दूसरा नहीं। दोनों अंग समान काम करें, यह सबके लिए कठिन है किन्तु एक का काम दूसरा कर देता है। शरीरशास्त्र का नियम शरीरशास्त्र का नियम है-एक अंग जख्मी हो जाए तो दूसरा अंग तत्काल उसकी सहायता में निकल पड़ता है। शरीर की ऐसी व्यवस्था है--एक अंग खराब होता है तो दूसरा उसका पूरा प्रतिनिधित्व करता है। दो गुर्दे काम करते हैं। यदि एक बेकार हो जाता है तो दूसरा उसका पूरा सहयोग करता है। एक आंख दूसरी आंख का, एक कान दूसरे कान का पूरा कार्य संभाल लेता है। दोनों समान नहीं होते। प्रकृति की ऐसी विचित्र रचना है-बायां अंग स्त्री को शक्तिशाली मिला और दायां अंग पुरुष को शक्तिशाली मिला। यदि वह जाग जाए तो व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। हम इतिहास को पढ़ें-समय-समय पर स्त्रियों ने अद्भुत कार्य किए हैं। बौद्धिकता के क्षेत्र में, धर्म के क्षेत्र में स्त्रियों ने उल्लेखनीय कार्य किए हैं। जिनका चैतन्य जाग गया, वह विलक्षण बन गई। राजीमती का चैतन्य जाग उठा। जब अरिष्टनेमि का रथ मुड़ा, राजीमती के मन पर गहरी चोट लगी, उसका चैतन्य जागृत हो गया। भाग्य खुल गया दुःख आना बुरी बात नहीं है। कभी-कभी वह दुःख अभ्युदय का कारण बन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 197 198 199 200 201 202 203 204