Book Title: Chandani Bhitar ki
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 201
________________ रूपान्तरण १८७ तो बात गले उतर जाती है। जो बात हजार बार कहने से समझ में नहीं आती, वह एक बुद्धिमान् द्वारा समझाने पर समझ में आ जाती है। एक सेठ को शराब का व्यसन था । अनेक लोगों ने इसे छोड़ने की प्रेरणा दी पर सेठ ने आदत नहीं छोड़ी। एक दिन एक व्यक्ति ने नौकरी देने की प्रार्थना की। सेठ ने कहा -- नौकर की मुझे जरूरत है पर निकम्मे नौकर की जरूरत नहीं है। तुम अगर पूरा काम कर सको तो तुम्हें नौकरी पर रख सकता हूं। नौकर ने पूछा- आपका काम क्या करना है ? सेठ ने कहा- मैं जो काम कहूं, उसे पूरा करना है। कुछ ऐसे नौकर आते हैं, वे काम पूरा नहीं करते। मुझे वह नौकर अच्छा लगता है, जिसे एक काम के लिए कहता हूं तो वह उससे जुड़े सारे काम एक साथ कर देता है। नौकर बुद्धिमान् था | उसने विनम्रता से कहा- आप मुझे सेवा का अवसर दें। मैं ऐसा प्रयत्न करूंगा । सेठ ने उसे नौकरी पर रख लिया। शाम का समय हुआ । सेठ ने कहा-जाओ, शराब की बोतल ले आओ। वह कुछ देर बाजार में घूमकर वापस आ गया। उसने शराब की बोतल सेठ के सामने रख दी। एक दवाइयों का बक्सा भी रख दिया। साथ-साथ डाक्टर को भी ले आया। कफन लाकर भी रख दिया। एक गाड़ी में चंदन की लकड़ियां भी आ गई। घर के बाहर अनेक लोग एकत्रित हो गए। सेठ यह सब देखकर अवाक् रह गया। उसने कहा- यह क्या धंधा है ? तुमने यह सब क्या किया? नौकर बोला - सेठजी ! आपने ही ने तो कहा था अधूरा काम नहीं करना है, पूरा काम करना है। मैंने वही किया है। आपने शराब मंगाई। शराब पीने वाला निश्चित बीमार होता है इसलिए दवा का बक्सा भी ले आया। बीमार को दवा डाक्टर की सलाह से देनी चाहिए इसलिए डाक्टर को भी बुला लाया। शराब पीने वाला जल्दी मरता है इसलिए कफन और लकड़ी भी ले आया । मैंने लोगों को भी कह दिया है। सेठ की शव यात्रा में आने के लिए। आस-पास के सारे लोग इधर ही आ रहे हैं। यह बात सेठ के मन पर तीर जैसे चुभ गई। उसने शराब की बोतल फेंक दी । नौकर से बोला- आज से शराब छोड़ता हूं। तुम सबको यहां से विदा करो। जो समझदार और बुद्धिमान् होता है, वह ऐसी बात कहता है कि तत्काल काम हो जाता है । राजीमती ऐसी ही महिला थी। उसके तर्क पूर्ण संबोधन ने रथनेमि की मूर्च्छा को तोड़ दिया। वे गिरे नहीं, संभल गए। उनका रूपान्तरण हो गया । रथनेमि को राजीमती ने उबारा। वे भोगों से विरत हो, उग्र तप तप कर पुरुषोत्तम बन गए और उनका घटनाक्रम प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरक इतिहास | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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