Book Title: Chandani Bhitar ki
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 194
________________ चांदनी भीतर की गोवालो भाण्डवालो वा जहा तव्य णिस्सरो। एवं अणिस्सरो तं पि, सामण्णस्स भविस्ससि। रपनेमि का प्रस्ताव घटना प्रसंग इस प्रकार बना--अरिष्टनेमि राजीमती को छोड़कर प्रव्रजित हो गए। राजीमती के मन पर गहरा आघात लगा। इस प्रकार छोड़कर चले जाना उसके लिए असह्य बन गया। अरिष्टनेमि के भाई रथनेमि इसे अवसर समझ कर राजीमती के पास आने जाने लगे। रथनेमि राजीमती को आश्वस्त करते हुए कहा-देवी ! विषाद मत करो। अरिष्टनेमि वीतराग हैं। वे विषयानुबंध नहीं करते। तुम मुझे स्वीकार करो। मैं जीवन भर तुम्हारी आज्ञा मानूंगा। राजीमती का उत्तर राजीमती का मन काम भोगों से विरक्त हो चुका था। उसे रथनेमि का प्रस्ताव उचित नहीं लगा। एक बार राजीमती ने मधु घृत संयुक्त पेय पीया। जब रथनेमि आए, राजीमती ने मदन फल खा उल्टी की। राजीमती से कहा--आप इसे पीएं। 'वमन किए गए पेय को कैसे पीऊं ?' 'क्या तुम यह जानते हो ?' 'यह बात तो छोटा बालक भी जानता है।' 'यदि यह बात है तो मैं भी अरिष्टनेमि द्वारा वान्त हूं। मुझे ग्रहण करना क्यों चाहते हो ? धिक्कार है तुम्हें, जो वान्त को पीने की इच्छा करते हो। इससे तुम्हारा मरना श्रेयस्कर है। घिरत्थु ते जसोकामी, जो तं जीवियकारणा। वंत इच्छसि आवेउ, सेयं ते मरणं भवे।। फिर फिसल गए राजीमती के संबोधन से रथनेमि आसक्ति से उपरत हो गए । अरिष्टनेमि केवली बन गए। रथनेमि भी प्रव्रजित हुए। राजीमती भी अनेक राजकन्याओं के साथ प्रव्रजित हो गई। एक बार अरिष्टनेमि रैवतक पर्वत पर समवसृत थे। साध्वी राजीमती आदि साध्वियां उनकी वंदना के लिए जा रही थी। अचानक वर्षा प्रारंभ हो गई। सभी साध्वियां इधर-उधर गुफाओं में चली गई। राजीमती जिस गुफा में गई, मुनि रथनेमि उसमें पहले से ही साधनारत थे। राजीमती ने अपने कपड़े सुखाने के लिए वस्त्रों को फैलाया। राजीमती को यथाजात (नग्न) देख रथनेमि का मन विचलित हो गया। अचानक राजीमती ने भी रथनेमि को देख लिया। वह शीघ्र ही अपनी बाहों से अपने आपको ढंकते हुए बैठ गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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