Book Title: Chandani Bhitar ki
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 193
________________ रूपान्तरण मार्मिक उत्तर एक राजा समर्थ और स्वतंत्र चिन्तन का धनी था। वह विद्वानों, कवियों और साहित्यकारों को बहुत प्रोत्साहन देता, खुले हाथ दान देता। विद्वानों को कभी अपनी गरीबी का अहसास कराने की जरूरत ही नहीं होती। जब इस प्रकार राज्य लक्ष्मी दूसरों के पास जाने लगी तब अधिकारी चिन्तित हो उठे। एक अधिकारी ने राजा से निवेदन किया-राजन् ! आपके पुरखों-पूर्वजों ने बहुत धन संचित किया है, खजाना भरा है। आप उसे खुले हाथ लुटा रहे हैं, खजाना खाली हो जाएगा। क्या आपको ऐसा करना चाहिए ? कुछ चिन्तन करें ? राजा ने कहा-मैं जो करता हूं, सोच समझकर करता हूं। तुम कहते हो-पूर्वजों ने इतना किया लेकिन क्या मैं उसका चौकीदार हूं। __राजा ने बहुत मार्मिक उत्तर दिया--मैं चौकीदार नहीं हूं। मैं राजा हूं। चौकीदार का काम है रखवाली करना। जो खजाना भरा हुआ है, उसकी रखवाली करना। अगर मेरे पिता ने मुझे चौकीदार बनाया होता तो मैं एक पैसा भी खर्च नहीं होने देता, चोरी भी नहीं होने देता पर में चौकीदार नहीं हूं। मैं मालिक हूं। मैं खजाने को भर भी सकता हूं और खाली भी कर सकता हूं मुश्किल है मालिक होना मालिक होना बहुत मुश्किल है। अधिकांश लोग चौकीदारी का काम करते हैं। ईश्वर होना या मालिक होना प्रत्येक व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। जब साध्वी राजीमती ने देखा--रधनेमि अब चौकीदार बन रहा है। उसका ईश्वरपना छूट रहा है। राजीमती ने रथनेमि को संबोधित करते हुए कहा--मुनिवर! एक दिन आप साधुत्व के मालिक बने थे, ईश्वर बने थे। अब ऐसा लगता है--आप ईश्वर को छोड़कर चौकीदार बन रहे हैं। जिस खजाने के आप मालिक हैं, उसका मालिकपन समाप्त हो रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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