Book Title: Chandani Bhitar ki
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 195
________________ रूपान्तरण १८१ उस समय मुनि रथनेमि ने साध्वी राजीमती ने कहा-भद्रे ! मैं रथनेमि हूं। सुरूप चारुभाषिणी ! तुम मुझे स्वीकार करो। तुम्हें कोई पीड़ा नहीं होगी। हम भोग भोगें। निश्चित ही मनुष्य जीवन दुर्लभ है। हम भुक्त-भोगी हो फिर जिन मार्ग पर चलेंगे। रहनेमि अहं भद्दे ! सुरुवे ! चारुभासिणी ! मम भया हि सुयणू ! न ते पीला भविस्सई। एहि ता भुजिमो भोए, माणुस्सं सुदुल्लहं। भुत्तभोगा तओ पच्छा, जिणमग्गं चरिस्सिमो। बहुश्रुत साध्वी रथनेमि की इस प्रार्थना पर राजीमती ने जो तर्क पूर्ण संबोधन दिया, उसने रथनेमि के पतन को उत्थान में बदल दिया। ___हम केवल कथा को न पढ़ें। साध्वी राजीमती ने जो तर्क दिए हैं, उनका अनुशीलन भी करें। वे बहुत मार्मिक तर्क थे शायद इसीलिए राजीमती को शीलवती के साथ-साथ बहुश्रुत भी कहा गया है। उसने जो तर्क प्रस्तुत किए हैं, उन्हें पढ़कर ऐसा लगता है-सचमुच वह बहुश्रुत साध्वी थी। उसके तर्क इतने बेधक थे, रथनेमि को चिन्तन के लिए बाध्य होना पड़ा। वे चौकीदारी से हटकर पुनः श्रामण्य मार्ग पर प्रस्थित हो गए। राजीमती ने कहा-मुनिवर ! आप चिन्तन करें। आप ग्वाले को जानते हैं। चरवाहा सैकड़ों गायों का झुण्ड लेकर जंगल में जाता है। वह गायों को चराता है, उनकी रखवाली करता है। शाम का समय होता है, वह गायों को लेकर लौट आता है। गायों को कुएं पर पानी पिला देता है और गाएं अपने अपने घरों की ओर चली जाती हैं। शाम को ग्वाले से पूछा जाए-तुम्हारे पास कितनी गाएं हैं। वह कहेगा--एक भी नहीं है। यदि उसे दूध की जरूरत पड़ जाए जो कहीं से खरीद कर या मांग कर लाना पड़ता है। उसके पास दूध भी नहीं है। वह गोपाल कहलाता है किन्तु उसे गायों की रखवाली करने का अधिकार है। वह उनका मालिक नहीं है। ग्वाला : खजांची ___राजा के खजांची होता है। उसके पास खजाने की चाबी होती है। वह अरबों-खरबों रुपये के धन और जेवरात की सुरक्षा करता है किन्तु यदि उसे पचास रुपये की जरूरत हो तो कहीं से मांग कर व्यवस्था करता है। खजाना उसके लिए कुछ भी नहीं है। उस पर उसका कोई अधिकार नहीं है। यदि वह चोरी कर ले तो मुसीबत पैदा हो जाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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