________________
जब धर्म अफीम बन जाता है
पढ़ें। वे कितने साधक व्यक्ति थे। उनमें कितनी सहिष्णुता और करुणा थी। सब कुछ विराट् था पर जैसे जैसे स्वार्थ की बातें जुड़ती चली गई. धर्म के साथ हिंसा जुड़ गई। उसे अफीम या नशे के रूप में देखा जाने लगा। हम धर्म के मंगल स्वरूप को समझें, अहिंसा, संयम और तप का जीवन जीएं, हमें अनुभव होगा--धर्म अफीम या नशा नहीं है, वह जीवन की पवित्रता का पथ है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org