Book Title: Chandani Bhitar ki
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 177
________________ चोर से अचौर्य की प्रेरणा १६३ उपादान और ज्योतिष अधिकांश लोग जन्मकुंडली बनवाते हैं। बच्चा जन्म लेता है, उसकी कुंडली बनाई जाती है। बहुत बार पूछा जाता है-क्या आप ज्योतिष में विश्वास करते हैं? ऐसा कौन है, जो जैन धर्म के तत्त्व को जानता है और ज्योतिष में विश्वास नहीं करता। जिसने जैन आगम सूर्य प्रज्ञप्ति को पढ़ा है, वह यह नहीं कह सकता-मेरा ज्योतिष में विश्वास नहीं है। जिसने महावीर को पढ़ा है, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को पढ़ा है, वह ज्योतिष में अविश्वास नहीं कर सकता। सौरमण्डल के विकिरण हमें प्रभावित करते हैं। उपादान सापेक्ष है इसलिए हम उनसे प्रभावित होते हैं। यदि उपादान निरपेक्ष हो जाए तो ज्योतिष कोई काम नहीं करेगा। हम नियम को अनिवार्य या एकांगी न मानें। नियम सापेक्ष है। ज्योतिष का उपयोग है भी और नहीं भी है। शनि और शंकर शनि ने शिव से कहा-महाराज ! मैं तो सब पर आता हूं आप पर भी आऊंगा। अब मेरी साढ़े साती आने वाली है, आप सावधान रहें। शंकर बोले-ठीक है, कोई बात नहीं। शनि यह कहकर चला गया। शंकर एक गुफा में ध्यान लगा कर बैठ गए। सोचा--शनि मेरा क्या करेगा ? वे एक दिन नहीं, एक वर्ष नहीं, पूरे साढ़े सात वर्ष तक ध्यान मुद्रा में बैठे रहे। साढ़े सात वर्ष पूरे हुए। शनि शंकर के पास आया। शंकर को प्रणाम करते हुए शनि ने कहा-महाराज ! मैं अब जा रहा हूं। शंकर ने कहा--अरे! तुम कह रहे थे, मैं आऊंगा। तुमने मेरा क्या बिगाड़ा ? शनि बोला-महाराज ! आप साढ़े सात वर्ष तक पत्थर की मूर्ति बने बैठे रहे और मैं क्या करता? शंकर ने अपना उपादान ऐसा बना लिया, शनि कुछ नहीं कर सका। उपादान को बलवान बनाएं जैन परंपरा के एक आचार्य बहुत बार कहते हैं-मैं अपने वर्ष भर का जन्म फल दिखा लेता हूं। जब-जब यह लगता है-मेरा यह समय ठीक नहीं है, तब मैं न बाहर जाता हूं, न व्याख्यान देता हूं। उस समय मैं एकांत में रहता हूं जप, तप, ध्यान आदि करता हूं। मेरा वह समय ठीक चला जाता है। यह उपादान को बलवान् बनाने का उपक्रम है। हम उपादान को बलवान् बनाएं। उपादान कमजोर है तो कुछ नहीं होगा। ज्योतिषी ने एक व्यक्ति को बताया-तुम्हारे शनि की साढ़े साती आने वाली है। यक्ति घबरा गया। उसने पूछा-महाराज ! मैं क्या करूं? ज्योतिषी ने उपाय बताया-तुम दान करो। किसका दान करूं? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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