Book Title: Chandani Bhitar ki
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 164
________________ १५० चांदनी भीतर की हैं-हमारा भाग्य ईश्वर के हाथ में है। वह जैसे चलाता है, हम चलते हैं। एक ईश्वर कर्तृत्व की धारा है तो दूसरी परिस्थितिवाद की धारा है। कुछ लोग सोचते हैं--आदमी वही करता है, जैसी परिस्थिति होती है। ईश्वरवाद और परिस्थितिवाद के बीच हमारी संकल्प की स्वतंत्रता खोई हुई है। परिचय है पर से ___मुनि ने कहा-मैं इन दोनों से हटकर इस निर्णय पर पहुंच गया हूं-मेरा संकल्प-स्वतन्त्र है। मैंने इसका प्रयोग करके देख लिया है। मुझे कोई पीड़ा से नहीं बचा सका। मेरा अपना संकल्प ही मेरे काम आया, मेरी रक्षा करने वाला बना। मैं इस गहराई में चला गया हूं जो स्रोत है, वह अपने भीतर ही है। हमारी बाहर की खोज बहुत चलती है वह इसलिए चलती है कि हम पर से बहुत परिचित हो गये। हम स्व और पर--दोनों शब्दों को जानते हैं किन्तु हम ज्यादा पर से ही परिचित है। हमारे सामने ज्यादा पर ही आता है इसलिए हम स्व की बात समझ नहीं पाते। हमारी साधना के विषय में भी ऐसा ही है। लगता है--हम स्व की दिशा में चल रहे हैं परन्तु वास्तविकता में हम पर की ओर चले जाते हैं। कैसा शान्त सहवास? भगवान बुद्ध ने कुछ स्थविरों को निर्देश दिया--अमुक गांव में चतुर्मास करके आओ। तीस-चालीस भिक्षु थे। उन्होंने पहले गोष्ठी कर चिंतन किया--ऐसी व्यवस्था बनाएं ताकि हमारा सहवास शांत बने। उन्होंने वर्गानुसार संयोजक बना लिए, सबको अपना काम बांटकर समझा दिया । व्यवस्था हो गई। फिर सोचा--कोई कलह नहीं हो उसके लिए और क्या-क्या करना चाहिए। एक सुझाव आया--हमें मौन करना चाहिए। एक भिक्षु ने तर्क प्रस्तुत किया--मौन करने से क्या होगा ? वह तो एक या दो घंटा किया जाएगा। बाईस घंटे शेष रह जाते हैं। लड़ाई होनी है तो हो ही जाएगी। तीसरे भिक्षु ने सुझाव दिया--हम सब भिक्षु चार महीनों का मौन कर लें। यह सुझाव सबको अच्छा लगा। सब भिक्षुओं ने मान्य कर लिया। शांत सहवास बीता। झगड़ा, आरोप, प्रत्यारोप, कलह कुछ भी नहीं हुआ। चतुर्मास पूरा हो गया। भिक्षुओं ने सोचा-हम बुद्ध के पास जायेंगे, हमें प्रशंसा मिलेगी। भिक्षु बुद्ध के पास आए। भगवान बुद्ध ने कुशलक्षेम पूछा। भिक्षुओं ने पहले सारी व्यवस्थाओं के बारे में बताया। उन्होंने कहा--हम सब चार महीने बिल्कुल मौन रहे, बड़ा शान्त सहवास बीता। बुद्ध बोले-- भिक्षुओं ! यह क्या किया? इससे तो अच्छा रहता कि पशुओं का टोला लाकर खड़ा कर लेते। तुम्हारे खर्च का बोझ तो नहीं बढ़ता। तुम वहां परस्पर बातचीत करते, लोगों को धर्म कथा की बातें बताते, ज्ञान देते, फिर शांत सहवास बिताकर आते तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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