Book Title: Chakradutt Author(s): Jagannathsharma Bajpayee Pandit Publisher: Lakshmi Vyenkateshwar Steam Press View full book textPage 7
________________ (8) विनम्र निवेदनम् | इसी लिये उन्हें चरकचतुराननकी उपाधि भी प्राप्त हुई थी, जैसा कि उनकी चरकसंहिता व्याख्याकी समाप्ति के परिचय से विदित होता है । इनके आविर्भावका समय ईसवीय ११०० का मध्यकाल है । जैसा कि श्रीमान् वर्तमान धन्वन्तरि महामहोपाध्याय कविराज गणनाथसेनजीने प्रत्यक्ष शारी रके उपोद्घात में लिखा है: ततश्च परमेकादशशतके चक्रपाणिर्नाम नयपालराजस्य वैद्यवरः प्रादुर्बभूव पुनश्च चक्रपा णकालश्च ख्रीस्तीयैकादशशतक मध्यभाग इति सर्ववादिसम्मतः सिद्धान्तः पूर्वोक्तहेतुः । इसकी उपयोगिता तथा सारवत्ताका अनुभव कर ही चरकसंहिता के टीकाकार श्रीयुत शिवदास - सेनजीने इसकी " तत्त्वचन्द्रिका " नामक संस्कृत व्याख्या की । श्रीशिवदास सेनजीका जन्मकाल १५०० ई० के लगभग माना जाता है । यह ग्रन्थ बंगाल में बना था, अतएव प्रथम बङ्गालमें ही इसका प्रचार भी अधिक हुआ और अबतक बङ्गाल में चिकित्साग्रन्थों में "चक्रदत्त" श्रेष्ठ समझा जाता है । इस ग्रन्थ में आर्ष प्रणाली के अनुसार स्वल्पमूल्य में तैयार होने और पूर्ण लाभ पहुँचानेवाले क्वाथ, कल्क, चूर्ण, अवलेह, घृत, तैल, आसव, अरिष्ट आदि लिखे गये हैं और उनके बनानेकी विधिका विवेचन इसमें पूर्णरूप से किया गया है । इसकी उपयोगिताको स्वीकार कर ही अन्य प्रान्तोंके विभिन्न विद्यालयोंने अपने पाठ्य ग्रन्थोंमें इसे रक्खा, यहाँ तक कि हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियत होनेपर मुझे भी सर्व प्रथम इस ग्रन्थ पढाने की आज्ञा मिली । यह सन् १९२५ ई० के अगस्त मासका अवसर था । उस समय बाजार में जो "चक्रदत्त" मिलता था, वह अत्यन्त विकृतावस्था में था, अतएव मेरे हृदय में यह भाव उत्पन्न हुआ कि इस ग्रन्थपर सरल हिन्दी टीका लिख तथा इसे संशुद्ध कर प्रकाशित करना चाहिये । अतः मैंने इस " सुबोधिनी " नामक टीकाका लिखना प्रारम्भ किया और वह श्रीगुरुपूर्णिमा संवत् १९८३ को समाप्त हुई, अतएव श्रीगुरुजी के करकमलों में अर्पित है । यद्यपि सन् १९२६ ई० में कुछ संस्करण विशेष सुधारके साथ निकल चुके हैं, पर मुझे विश्वास है कि आप इस सुबोधिनी टीकाको विवेचनात्मक बुद्धिसे पढकर इसकी उपयोगिता अवश्य स्वीकार करेंगे । इस स्वल्प सेवासे यदि सर्वसाधारणको कुछ भी लाभ हुआ तो मैं अपने परिश्रमको सफल समझंगा । इस पुस्तक छापने प्रकाशित करने और दुबारा छापनेका अधिकार आदि सब स्वत्त्व सहित श्रीमान् " श्रीवेंकटेश्वर " स्टीम्मुद्रणयन्त्रालयाध्यक्ष श्रीसेठ खेमराजजी श्रीकृष्णदासजीको समर्पण कर दिया है । विनम्र - निवेदक:जगन्नाथशर्मा वाजपेयी आयुर्वेदाचार्यः प्रोफेसर आयुर्वेद - हिन्दू विश्वविद्यालय-वाराणसीस्थःPage Navigation
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