Book Title: Chakradutt Author(s): Jagannathsharma Bajpayee Pandit Publisher: Lakshmi Vyenkateshwar Steam Press View full book textPage 6
________________ विनम्र निवेदनम् ।। माननीय-वाचक-महोदयाः ! मनुष्य जीवनका फल धर्म, अर्थ, काम, मोक्षरूपी चारों पदार्थों का प्राप्त करना है, पर शरीरकी आरोग्यता विना उनमेंसे एक भी नहीं सम्पादन किया जा सकता। जैसा कि महर्षि अग्निवेशने कहा है धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम् । रोगास्तस्यापहर्तारः श्रेयसो जीवितस्य च ॥ उस आरोग्य शरीरकी रक्षा तथा रोग उत्पन्न हो जानेपर उनके विनाशके उपायोंका वर्णन ही "आयुर्वेद" है। अतएव परम कुशल वाग्भटने लिखा है आयुष्कामयमानेन धर्मार्थसुखसाधनम् । __ आयुर्वेदोपदेशेषु विधेयः परमादरः ॥ उस आयुर्वेदके आचार्य सर्व प्रथम देवाधिदेव ब्रह्मा, ततः प्रजापति, ततः अश्विनीकुमार, ततः इन्द्र, ततः भरद्वाज, ततः अग्निवेशादि हुए । उन आचार्योंने अपनी अपनी विस्तृत संहिताएँ सर्व साधारणके उपकारार्थ बनायीं । पर समयके परिवर्तनसे अल्पायु तथा सामान्यबुद्धियुक्त मनुष्यमात्रको उन संहिताओंसे सार निकालना कठिन समझ, करुणाई महर्षियों तथा सामयिक विद्वानोंने उन संहिताओंको अनेक अङ्गोंमें विभक्त कर दिया । अतः साधारण रीतिसे उसके दो विभाग हुए । १ रोगचिकित्सा, और २ स्वास्थ्यरक्षा। जैसा कि श्रीमान् सुश्रुतने लिखा है इह खल्वायुर्वेदप्रयाजनम्, व्याध्युपसृष्टानां व्याधिपरिमोक्षः स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणम् इति । उसमें रोगविनाशार्थ शीघ्र क्रियाकी आवश्यकताका अनुभव कर रोगविनाशमें प्रथम ज्ञेय विषय रोगको जानना चाहिये। तदुक्तं चरके रोगमादौ परीक्षेत ततोऽनन्तरमौषधम् । ततः कर्म भिषक्पश्चाज्ञानपूर्व समाचरेत् ॥ श्रीमान् माधवकारने "माधवनिदान" नामक रोगनिर्णायक-ग्रन्थका संग्रह किया। इसके कुछ समयानन्तर ही श्रीमान् चरकचतुरानन दत्तोपाह चक्रपाणिजीने इस चिकित्सासारसंग्रह " चक्रदत्त" की रचना की । माधवनिदानके अनन्तर ही इसकी रचना हुई, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं । क्योंकि जिस क्रमसे रोगोंका वर्णन श्रीमान् माधवकारने किया है, उसी क्रमसे चिकित्सा विधान इस ग्रन्यमें वर्णित है । इस ग्रन्थके रचयिता नयपाल नामक वङ्गन्देशीय नरेन्द्रके प्रधान वैद्य थे, जैसा कि उन्होंने अपना परिचय इसी ग्रन्थके अन्तमें दिया है । इस ग्रन्थकी रचनाके साथ ही उन्होंने चरकसंहिताकी “आयुर्वेददीपिका" नामक व्याख्या भी की थी।Page Navigation
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