________________ प.भा . aaaamaaave/amama/aawaavawan/08/caartiasation फरी गयो, तेथी ते नीवीयातुं कहेवाय. परंतु विगइ न कहेवाय, एटला माटे ते नीवीना है| पल्भाल || पञ्चस्काण वालाने लेवी कहपे. अने सुकुमारिकादिक सुखमीने तावमामांहेथी काढया पली जगज्युं जे घृतादिक तेने विषे चूला उपर बते अग्निसंयोगथी तपे थके तेमांहे देपव्यु जे कणिकादिक दल प्रमुख तेने उत्कृष्ट | द्रव्य कहीये, ते विकृतिगत जाणवू. ते केम के ? चूरिम पूर्वे कमाह विग थर नग्न कणिका कीधी ते कष्ण घृत गोल परस्परे अव्य हत थइने पड़ी ते कणिका केप करी मोदक बांध्या एवं जे चूरमादिक ते विकृतिगत जाणवू, पण विगय समजवी नहि, एनुं नाम जस्कृष्ट ऽव्य जाणवू. एम कटलाएक श्राचार्य कहे . नामांतरे गीतार्थानिप्राये तो एम के जो चुब्हाना माथाथी उतरया पली शीत थया केमे जे कणिकादिक क्षेपवीये, ते तथाविध पाकानावथी विकृतिगत हा॥१४९॥ कहीये, अन्यथा परिपक्व विशेष थये व्यगत कहीये, पण विग तथा निर्विकृतिक न कहीये, एबुं व्याख्यान प्रवचनसारोद्धारवृत्तिना अभिप्रायथी लख्युं बे, पण तिहां एम कथु बे, जे सुधिये Vaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaan Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jamelibrary.org