Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam
Author(s): Balabhai kakalbhai
Publisher: Balabhai kakalbhai

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Page 311
________________ raawaavaepsaneleowaneme/0Bawa/meROIN विस्तारार्थः-ध प्रमुख जे विगले ते प्रत्ये अने विकृति गत जे क्षीरादिक त्रिविध द्रव्य नीवीयाता कह्या ते प्रत्ये विगति एटले विरुद्धगति ते नरक, तिर्यंच, कुदेव, कुमाणसत्वरूप जे माठी गतियो बेतेनाथकीनीती राखतो एटले बीहतो अथवा संयम ते गति अने तेनो प्र|तिपक्षी जे असंयम ते विगति जाणवी. तेवी विरुद्धगतिथकी बोहतो एवो जे वली साधु ते मुंजे एटले खाय ते साधुने विग ते विगति जे नरकादिकनी विरुद्ध गति तेने विषे बलात्कारे एटले | ते साधु जो पण उर्गतिमां जवाने नथी वांडतो तो पण बलात्कारे तेने माठी गति प्रत्ये पहों| चामे. ते विग केहेवी डे ? तो के विकृति स्वन्नाव, एटले विकार उपजाववानो डे स्वन्नाव || है | जेने एवी बे. केम के ए विकृति ते अवश्य शब्दादिक कामनोगने वधारे एवी , माटे कारण मा विगयादिक न लेवां. अने श्रावकने पण निव प्रमखने पञ्चरकाणे कोइ महोटा कारण विना तथा विशेष तप विना नीवियाता लेवा कल्पे नहि, एनो विस्तार श्रीयावश्यकनियुक्तिनी वृत्तिथी तथा प्रवचनसारोद्धार नीवृत्तिादिक ग्रंथथी जाणवो. अहीं संक्षेप मात्र लख्यो 40 AANDAppronapartetnavarateaeptemmeena Jain Education International For Personal & Private Use Only www.janebryong

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