Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam
Author(s): Balabhai kakalbhai
Publisher: Balabhai kakalbhai

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Page 315
________________ वीजं यावत्कथिक, ग वेनेदे नुसरगुण प्रत्याख्यान तमा साधुने श्वरगुण पञ्चरकाण ते कांक अनि ग्रहादिक जाणवां, अने यावत्कषिक ते पिमविशुद्धयादिक तथा अनियंत्रितादिक जे नि कादिक पण अन्नग्न होय-नंग न थाय, ने सर्व यावत्कधिक जाणवां, अने श्रावकने नो इत्वर ते चार शिक्षात्रतादिक ने. अने यावत्कधिक त्रण गुणवतादिक ते. ते श्रावक व नंदे . एक अविरति सम्यगुष्टि ने केवल सम्यगदर्शन युक्त कृष्ण श्रेणिकादिकनी परे जाणवा, अने वीजा विरति सम्यग्दृष्टि, ने वली बे ने एक सानिग्रही अने वीजा निरनिग्रही. ते वल। विनयमान श्रका श्राप दे थाय, ते केवी रीते ? तो के एक इविध त्रिविध. बीजो द्विविधतिविध, त्रीजो द्विविध एकविध, चोथो एकविध त्रिविध, पांचमो एकविध विविध, यो एकविध एकविध, ए नांगा पांच व्रत आश्रयोथाय,अने कोशएक उत्तरगुण माहेबु कोइएक बत लीये, ते सातमो नांगो जाणवो, अने थाउमो नांगो कोई नियम मात्र नज लीये ते जा. णवो. ए रीते पुाक्त पांच छात्रतादिक तेने मनांगे गुणीये तेवारे त्रीश नंग थाय. तेनी साथे sinin Education International For Personal & Private Use Only www.janelyg

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