Book Title: Chaityavandanadi Bhashya Trayam
Author(s): Balabhai kakalbhai
Publisher: Balabhai kakalbhai

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Page 310
________________ प०भा० पभ / 9080500000000000000000D/DARDAR नजमाल होय, ज्ञानादिकनो उद्यमी होय, तेवारे शरीरे ग्लानादिक निमित्ते औषधादिक कारणे लेवां करपे, अन्यथा कारणविना लेवां कल्पे नहीं. जेमाटे कडं बे, ते आगली गाथाये || कहे . // 3 // विगई-विगइप्रत्ये / विगइगय-निवीयाता भुंजए-खाय बला-बलात्कारे विगइ-नरकादि माठी गति जो-जे. साहू-साधु नेइ-पहोंचाडे भोओ-बीहतो | अ-वलो विगइसहावा-विकृतिस्वभाव विगइं विगइ भीओ, विगइगयं जो अ भुंजए साहू॥ POANDAPORE/APPS/Ramevtaura/es/ANI/Antamaal विगई विगइ सहावा, विगई विगई बलानेइं // 40 // शब्दार्थ-विगइने अने विगइमा रहेला क्षीरादिकने नरकादि विरुद्ध गतिथी भय पामतो जे साधु भक्षण करे छे, तो विकार पमाडवाना स्वभाववाली विगइ ते साधुने बलात्कारे माठी गति प्रत्ये पहोंचाडे छे. // 40 // For Personal Private Use Only

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