Book Title: Buddhinidhan Abhaykumar Diwakar Chitrakatha 006
Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 2
________________ बुद्धिनिधान अभयकुमार संसार में जितने भी बल हैं, 'बुद्धि-बल' उनमें सर्वश्रेष्ठ है। अपने विकसित बुद्धि-बल के कारण ही दुबला-पतला मानव समूची सृष्टि पर नियंत्रण और शासन करता है। यद्यपि मनुष्य बुद्धिमान प्राणी है, परन्तु सच यह है कि सभी मनुष्यों में बुद्धि-बल समान नहीं होता। संसार में कुछ ही ऐसे बुद्धिमान मानव होते हैं, जो अपने विलक्षण बुद्धि-बल से समाज और राष्ट्र की कठिन से कठिन समस्याओं का सुन्दर समाधान करके सबके साथ न्याय और सबका भला करते हैं। मगध का महामन्त्री अभयकुमार ऐसा ही विलक्षण बुद्धिमान था, जिसके पास था हर समस्या का समाधान। जैन इतिहास के अनुसार अभयकुमार, मगध नरेश श्रेणिक की रानी नन्दा, जो स्वयं वणिक-कन्या थी, का इकलौता आत्मज था। उसका बचपन पिता की छत्रछाया से दूर ननिहाल में बीता। जब उसे पता चला कि उसके पिता मगध के महाराजा हैं, तो वह अपनी माता के गौरव एवं स्वयं के स्वाभिमान की रक्षा करता हुआ बड़े रहस्यमय ढंग से आत्म-सम्मान के साथ उनसे मिलता है। अपनी अद्भुत दूर-दृष्टि, चतुरता और सहज बुद्धिमानी के बल पर वह किशोरावस्था में ही मगध साम्राज्य का महामंत्री बन गया और राजा एवं प्रजा के लिए समान हित चिन्तक रहकर स्वयं धर्मनिष्ट जीवन जीता रहा। अभयकुमार भगवान महावीर का परम भक्त और व्रतधारी श्रावक हो हुए भी राजनीति का चतुर खिलाड़ी था। उसके शासनकाल में मगध साम्राज्य का चहुंमुखी विकास हुआ। जैनधर्म की बहुमुखी प्रभावना हुई। अहिंसा और शाकाहार का विशेष प्रसार हुआ। नन्दीसूत्र की टीका और श्रेणिक चरित्र, अभयकुमार चरित्र आदि ग्रन्थें भयकुमार की बुद्धिमानी की कुछ शिक्षाप्रद एवं रोचक घटनाएँ ली गई हैं -महोपाध्याय विनय सागर - श्रीचन्द सुराना 'सरस' - लेखक : राष्ट्रसंत सारा लि राजा सम्पादक: प्रकाशन प्रबंधक: श्रीचन्द सुराना 'सरस' संजय सुराना चित्रांकन : श्यामल मित्र प्रकाशक श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282 002. फोन : 0562-2851165 सचिव, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर 13-ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302 017. फोन : 2524828, 2561876, 2524827 अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.) Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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