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जापुर
दिवाकर
FICE
भाशाहिती
चित्रकथा
बुद्धिनिधान अभयकुमार
अकादमी
अंक ६ मूल्य 20.00
सुसंस्कार निर्माण विचार शुद्धि ज्ञान वृद्धि
मनोरंजन
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बुद्धिनिधान अभयकुमार
संसार में जितने भी बल हैं, 'बुद्धि-बल' उनमें सर्वश्रेष्ठ है। अपने विकसित बुद्धि-बल के कारण ही दुबला-पतला मानव समूची सृष्टि पर नियंत्रण और शासन करता है। यद्यपि मनुष्य बुद्धिमान प्राणी है, परन्तु सच यह है कि सभी मनुष्यों में बुद्धि-बल समान नहीं होता। संसार में कुछ ही ऐसे बुद्धिमान मानव होते हैं, जो अपने विलक्षण बुद्धि-बल से समाज और राष्ट्र की कठिन से कठिन समस्याओं का सुन्दर समाधान करके सबके साथ न्याय और सबका भला करते हैं। मगध का महामन्त्री अभयकुमार ऐसा ही विलक्षण बुद्धिमान था, जिसके पास था हर समस्या का समाधान।
जैन इतिहास के अनुसार अभयकुमार, मगध नरेश श्रेणिक की रानी नन्दा, जो स्वयं वणिक-कन्या थी, का इकलौता आत्मज था। उसका बचपन पिता की छत्रछाया से दूर ननिहाल में बीता। जब उसे पता चला कि उसके पिता मगध के महाराजा हैं, तो वह अपनी माता के गौरव एवं स्वयं के स्वाभिमान की रक्षा करता हुआ बड़े रहस्यमय ढंग से आत्म-सम्मान के साथ उनसे मिलता है। अपनी अद्भुत दूर-दृष्टि, चतुरता और सहज बुद्धिमानी के बल पर वह किशोरावस्था में ही मगध साम्राज्य का महामंत्री बन गया और राजा एवं प्रजा के लिए समान हित चिन्तक रहकर स्वयं धर्मनिष्ट जीवन जीता रहा।
अभयकुमार भगवान महावीर का परम भक्त और व्रतधारी श्रावक हो हुए भी राजनीति का चतुर खिलाड़ी था। उसके शासनकाल में मगध साम्राज्य का चहुंमुखी विकास हुआ। जैनधर्म की बहुमुखी प्रभावना हुई। अहिंसा और शाकाहार का विशेष प्रसार हुआ। नन्दीसूत्र की टीका और श्रेणिक चरित्र, अभयकुमार चरित्र आदि ग्रन्थें
भयकुमार की बुद्धिमानी की कुछ शिक्षाप्रद एवं रोचक घटनाएँ ली गई हैं -महोपाध्याय विनय सागर
- श्रीचन्द सुराना 'सरस'
- लेखक : राष्ट्रसंत सारा लि राजा सम्पादक:
प्रकाशन प्रबंधक: श्रीचन्द सुराना 'सरस'
संजय सुराना
चित्रांकन : श्यामल मित्र
प्रकाशक
श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282 002. फोन : 0562-2851165
सचिव, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर 13-ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302 017. फोन : 2524828, 2561876, 2524827
अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.)
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बुद्धि निधान अभय कुमार
राजा श्रेणिक और नन्दा का पुत्र अभयकुमार पाठशाला में आचार्यों की प्रशंसा का पात्र होने के कारण सहपाठी उससे ईर्ष्या करने लगे थे। उसे नीचा दिखाने के लिए "बिना बाप का बेटा" कहकर चिड़ाना प्रारम्भ कर दिया। इस अपमान से तिलमिलाया हुआ अभय उदास होकर घर में बैठा था तभी उसकी माता नन्दा ने
'पूछा
राख
21000
यह सुनकर नन्दा एकदम तड़फ उठी ।
कौन कहता है, तू बिना प का बेटा है? तेरे पिता महान हैं। स्वयं वेणातट नरेश भी उनका सम्मान करते थे।
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पर माँ! मैंने तो पिताजी को कभी नहीं देखा।
बेटा ! आज इतना उदास क्यों बैठा
है ? क्या बात है?
माँ ! पाठशाला में मेरे सहपाठी मुझे बिना बाप का बेटा कहकर चिड़ाते हैं।
जब तू गर्भ में था, अचानक खबर मिली कि उनके पिता मृत्यु शैय्या पर पड़े हैं। वह तुरन्त अपने पिता से मिलने चले गये। गर्भवती होने के कारण मैं उनके साथ नहीं जा सकी।
माँ ! पिताजी का नाम क्या है? वह
कहाँ के निवासी हैं?
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बुद्धि निधान अभय कुमार बेटा! उनका नाम, पता तो मुझे भी नहीं । यह सुनकर विलक्षण बुद्धि का धनी अभय एकदम मालूम। किंतु उन्होंने यहाँ से जाते समय कहा | | उछल पड़ा। था कि मैं राजगृह का गोपाल हूँ। नगर में सबसे विशाल श्वेत भवन मेरा घर है, जिसके सोने के
माँ! क्या तू नहीं समझी, कंगूरे आसमान से बातें करते हैं।
पिताजी ने संकेतों में सब
कुछ तो बता दिया।
वह कैसे?
माँ! 'गो' कहते हैं पृथ्वी को, उसका पालन करने वाला गोपाल; अर्थात् नगर का राजा। विशाल श्वेत
भवन आकाश से बातें करते कंगूरे यह सब राजमहल के चिन्ह हैं। अवश्य ही मेरे पिताजी
राजगृह नगर के राजा होंगे।
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नन्दा चुप होकर अभय के विश्लेषण पर विचार करने लगी।।
माँ! क्या सोच रही हो? पिताजी का परिचय मिल गया। अब हम उनके पास चलेंगे।
बेटा! तेरे पिता यदि राजगृह के राजा हैं तो मैं उनकी रानी हूँ। उनका
कर्त्तव्य है कि मुझे सम्मानपूर्वक ले जायें।
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बुद्धि निधान अभय कुमार
अभय ने अपनी माँ के विचारों का मतलब समझ लिया ।
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जन्दा को अपने पुत्र की विलक्षण बुद्धि पर विश्वास था। उसने अभय के साथ चलने की स्वीकृति दे दी।
ठीक है माँ । हम सीधे राजगृह न जाकर वहीं पास के किसी ग्राम में रुकेंगे और वहाँ कुछ ऐसा काम करेंगे कि पिताजी स्वयं चलकर आयें और हम दोनों को ही सम्मानपूर्वक राजगृह ले जायें /
अभय कुमार और नन्दा कई दिन की यात्रा के बाद राजगृह के समीप नन्दीग्राम में पहुँचे।
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माता को साथ लेकर अभय एक अच्छी धर्मशाला में आकर ठहर गया। नहा-धोकर अच्छे कपड़े पहनकर वह गांव की तरफ निकला।
वहाँ भीड़ क्यों लगी है ? चलकर देखना
चाहिए।
माँ, हम कुछ दिन यहीं रुकेंगे।
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बुद्धि निधान अभय कुमार अभय कुमार ने पास पहुंचकर देखा-एक नीम के पेड़ के नीचे सभी ग्रामवासी इकट्ठे होकर विचार कर रहे हैं। गांव का मुखिया कह रहा था
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भाईयो! राजा श्रेणिक हम पर कुपित हो गया।
है, इसलिए उसने हमें एक असंभव और कठिन आज्ञा भेजी है कि गाँव के मीठे पानी के कुए को राजगृह पहुँचाओ, अन्यथा राजाज्ञा भंग करने का कठोर दंड दिया जायेगा। अब तो हमें
गाँव छोड़कर कहीं दूर जाना पड़ेगा।
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| तभी अभय पीछे से सामने आ गया और मुखिया को नमस्कार करके बोला
मुखिया जी, क्या मैं बेटा ! तुम कौन हो? तुम्हें पता नहीं। आपकी कुछ मदद MIRMW राजा श्रेणिक जिस पर रुष्ट हो जाते कर सकता हूँ?
हैं, उसे भगवान भी नहीं
बचा सकते ।
अभय कुमार ने हँसते हुए कहा
मुखिया जी! मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता.
है, फिर आपकी यह समस्या तो मैं ही चुटकियों में हल कर सकता हूँ।
वह कैसे?
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बुद्धि निधान अभय कुमार
अभय ने ग्रामवासियों को समझाकर राजा श्रेणिक के पास भेजा। ग्रामवासी श्रेणिक के दरबार में पहुँचे और बोले
महाराज! आपका आदेश सुनते ही कुआँ नगर में आने को तैयार हो गया। लेकिन गाँव का होने के कारण वह नगर की तड़क-भड़क से झिझकता है। कृपा करके अपने नगर का एक कुआँ हमारे ग्राम में भिजवा दीजिये तो, उसके साथ वह खुशी-खुशी चला आयेगा।
उत्तर सुनकर राजा श्रेणिक हैरान रह गये।
अपने विचार छुपाते हुए राजा ने कहा
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वाह! आप लोगों की बुद्धिमानी के क्या कहने? मुझे आशा है कि आप लोग इसी तरह दूसरी समस्याओं का भी समाधान कर दोगे।
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गाँव के पंडितों ने सीना फुलाकर कहा
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इन मूर्ख ग्रामवासियों में इतनी बुद्धि कहाँ से आ गई? जरूर यह उपाय किसी अन्य व्यक्ति के दिमाग की उपज है।
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राजन् ! आप बताइये तो सही।
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बुद्धि निधान अभय कुमार राजा श्रेणिक ने अपने सेवक को संकेत किया, वह एक मुर्गा ले आया। राजा ने मुर्गा उन ब्राह्मणों को देकर कहा
इस मुर्गे को लड़ना सिखाओ। शर्त यह है कि इसके सामने कोई दूसरा मुर्गा न हो। हम अगली प्रतियोगिता में इसे लड़वाना चाहते हैं। अगर यह (हार गया तो तुम्हारी खैर नहीं है।
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यह सुनकर ब्राह्मणों के हृदय काँप गये। वे ग्राम वापस आये और मुखिया के सामने मुर्गे को रखकर राजा की आज्ञा सुना दी। मुखिया चिन्ता में पड़ गया। उसने अभय कुमार को बुलवाया और सारी बात बताई-स रकाशा
अकेला मुर्गा लड़ना कैसे सीख सकता है?/ मुखिया जी! यह तो कोई विशेष अब हम क्या करें?
समस्या नहीं है। अभी इसका
समाधान कर देता हूँ।
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| अभय ने मुखिया को एक युक्ति बताई
इस मुर्गे को एक दर्पण के सामने छोड़ दो। अपने । ही प्रतिबिम्ब को दूसरा मुर्गा समझकर यह उस पर झपटेगा और लड़ना सीख जायेगा। कुछ ही दिनों में यह द्वन्द्व युद्ध में प्रवीण हो जायेगा।
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अरे ! वाह !!
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बुद्धि निधान अभय कुमार
ग्रामवासी मुर्गे को लेकर श्रेणिक के पास आये।।
ऐसा ही किया गया
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महाराज! हमने आपके मुर्गे को युद्ध में प्रवीण कर दिया। | है। आप चाहें तो इसकी
परीक्षा ले सकते हैं।
| और मुर्गा द्वन्द्व युद्ध में कुशल लड़ाकू हो गया।
राजा ने तुरन्त एक लड़ाकू मुर्गा मँगवाया और उसके सामने, छोड़ दिया। यह मुर्गा उस लड़ाकू मुर्गे पर टूट पड़ा।
बैं....क्वै...
क्वै.....
गाँव वाले मुर्गे ने उस लड़ाकू मुर्गे पर चौंच से ऐसे तीव्र प्रहार किये कि राजा का मुर्गा थोड़ी देर में ही लहूलुहान होकर धरती पर गिर पड़ा। ANJइन गाँव वालों में जरूर
कोई बाहर का बुद्धिमान
आया हुआ है, जो मेरी पिने सब युक्तियों को काटता
AGO जा रहा है।
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बुद्धि निधान अभय कुमार
श्रेणिक ने ब्राह्मणों से पूछा-MORG
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तुमने अकेले मुर्गे को लड़ना कैसे सिखाया?
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महाराज! हमने इसके सामने । दर्पण रख दिया। अपने ही
प्रतिबिम्ब को दूसरा मुर्गा समझकर यह लड़ना सीख गया।
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आप ले
आप लोगों के मुखिया तो बुद्धि के सागर ही मालूम होते हैं। अब मेरा एक काम
और करो। हमें बालू की रस्सी की जरूरत है, मुखिया जी को कहो जल्दी बालू की रस्सी बनाकर भेजें।
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| गाँव आकर उन्होंने मुखिया को राजा की माँग सुनाई। सुनकर मुखिया का सिर चकरा गया।
(बालू की रस्सी, न कभी देखी
न कभी सुनी, कैसे बनेगी? इस बार राजा ने असम्भव
काम बता दिया......।
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मुखिया अभय कुमार के पास चलकर आया और नई समस्या बताई
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बुद्धि निधान अभय कुमार
बेटे ! बालू की रस्सी गुंथना तो असम्भव है। इस बार राजा हमें अवश्य दण्ड देगा।
अभय की माता नन्दा को इन घटनाओं की सूचना मिलती रहती थी। एक दिन उसने अभय कुमार
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अभय कुमार सोचता रहा, फिर उसने गाँव के लोगों को कुछ समझा दिया और कहा
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चार-पाँच दिन बाद नन्दीग्राम के लोग श्रेणिक के दरबार में पहुँचे और बोले
तुम लोग दो-चार दिन बाद राजगृह चले जाना और जैसा मैंने कहा है, वैसा ही राजा से कह देना।
बेटा! अपने पिताजी की योजनाओं में बाधक बनने से तुझे क्या लाभ है. ?
माँ! यह तो बुद्धि का खेल है, तुम देखती जाओ, पिताजी भी जानें कि मैं भी उनका पुत्र हूँ।
सहमत हनवता
से कहा
महाराज ! हम आपको बालू की रस्सी लाकर दे देंगे, लेकिन आप अपने राज भण्डार में से हमें बालू की रस्सी का एक टुकड़ा दिलवा दीजिए। उसी नमूने की रस्सी हम बना देंगे।
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बुद्धि निधान अभय कुमार
ग्रामवासियों का उत्तर सुनकर श्रेणिक को विश्वास होने लगा कि कोई विलक्षण बुद्धि व्यक्ति इनके ग्राम में आ गया है और उसकी योजनाएँ विफल कर रहा है। प्रकट में बोला
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खैर, बालू की रस्सी की हम व्यवस्था कर लेंगे। अभी आप जाइये फिर कभी कोई
जरूरत होगी तो आपको बुलवा लेंगे।
(नन्दीग्राम के मुखिया और ग्रामवासी तो मोटी बुद्धि वाले हैं। कौन ऐसी क विलक्षण बुद्धि वाला है जो इन्हें पट्टी पढ़ा रहा है?
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इधर गाँव वालों ने लौटकर अभय कुमार को बतलाया
महाराज ने हार मान ली। अब कोई आदेश
नहीं दिया।
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उसने अपने गुप्तचरों को बुलाकर आदेश दिया
तुम लोग नन्दीग्राम जाओ। पता लगाओ कि ऐसी विलक्षण बुद्धि वाला कौन नया व्यक्ति गाँव में आया है।
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महाराज ने हार नहीं मानी। ऐसा लगता है कि अब वह नये ढंग से चाल चलेंगे।
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बुद्धि निधान अभय कुमार अगले दिन छ:-सात गुप्तचर ग्रामीण वेशभूषा बनाकर नन्दीग्राम जा पहुंचे। चतुर अभय कुमार ने इन्हें गाँव में | देखा तो वह चौंक गया। माता-MAT NM WWyWM AAREERUTA अरे ! इनको तो गाँव में पहली बार
देखा है, और यह ग्रामीण भी नहीं) RAM लगते हैं। अवश्य ही राजा
AA श्रेणिक के आदमी होंगे।
अभयकुमार पास के जामुन के पेड़ पर चढ़ गया।
वे लोग भी उसी पेड़ के नीचे आ बैठे। अभय कुमार ने उनकी बातें सुनी तो उसे विश्वास हो गया कि ये राजा के गुप्तचर ही हैं। वह बोला
इस प्रश्न का रहस्यार्थ गुप्तचर नहीं समझ सके। किन्तु वे बोले
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राहगीरो ! जामुन
खाओगे?
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हाँ भाई, अगर खिलाओगे तो अवश्य खायेंगे।
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गरम खाओगे या ठण्डे?
गरम ही खायेंगे
भाई।
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बुद्धि निधान अभय कुमार
अभय ने पके हुए जामुन तोड़े, हाथ से कुछ मसले और नीचे फेंक दिये। जामुनों से धूल चिपक गई। गुप्तचर फूँक से धूल उड़ाकर जामुन खाने लगे। अभय व्यंग से बोला
यदि जामुन अधिक गरम हों, फूँक से ठण्डे नहीं हो रहे हों तो पानी से धोकर खालो।
गुप्तचरों ने ग्रामवासियों से सभी बातों का पता लगाया। अभयं के बारे में विशेष जानकारी ली और राजगृह लौटकर श्रेणिक को पूरी घटना सुना दी।
महाराज ! अभय नाम का चतुर किशोर लगभग एक माह पहले नन्दीग्राम में आया है। उसी ने आपकी सभी योजनाएँ विफल की हैं। वह बड़ा ही बुद्धिमान और चतुर लड़का है।
श्रेणिक के मन में अभय से मिलने की उत्सुकता जाग गई।
मेरी युक्तियों को काटने वाला सचमुच मुझसे भी ज्यादा बुद्धिमान होगा। इस बालक से मिलना चाहिए।
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गुप्तचर अभय का व्यंग समझ गये और साथ ही यह भी समझ गये कि यही वह चालाक छोकरा लगता है जो गाँव वालों को उल्टी पट्टी पढ़ाता है।
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इसको राजगृह
में बुलाने के लिए कोई युक्ति करता हूँ।
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बुद्धि निधान अभय कुमार श्रेणिक ने एक योजना तैयार की और चुपचाप अपनी हीरे जड़ी अंगूठी नगर के एक गहरे सूखे कुएँ में गिरा दी।
अब मैं उस बालक की चतुरता की परीक्षा स्वयं अपने
सामने ले लूँगा।
दूसरे दिन उन्होंने नगर में घोषणा करवा दी।
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हमारे राजा को भी क्या
अनहोनी सूझी है?
मगध सम्राट की हीरे जड़ी अंगूठी नगर के एक गहरे कुएँ में गिर गई है। जो व्यक्ति बिना कुएँ में उतरे उसे निकाल देगा उसे मगध राज्य का
प्रधानमन्त्री बना दिया जायेगा।
यह घोषणा राजगृह और आस-पास के गाँवों में विशेष रूप से नन्दीग्राम में भी की गई।
लोग घोषणा सुनकर अपना भाग्य आजमाने कुएँ पर आने लगे और अँगूठी निकालने का प्रयास करने लगे। किंतु गहरा सूखा कुआ देखकर सभी की खोपड़ी चकरा जाती।
बिना उतरे अँगूठी P- निकालना असम्भव है।
बहुत गहरा कुआँ है।
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बुद्धि निधान अभय कुमार इस तरह काफी दिन व्यतीत हो गये परन्तु कोई अँगूठी श्रेणिक तो आतुर बैठा था। वह तुरन्त रथ में| नहीं निकाल सका। एक दिन अभय राजगृह आया। बैठकर चला आया। और अभय से बोलाउसने कुर के पास पहुंचकर सैनिकों से कहा
बालक ! तुम कुएँ से अँगूठी निकालोगे? देर मत करो शीघ्र ही निकालो।
मैं कुएँ में से अंगूठी निकाल सकता हूँ परन्तु
महाराज श्रेणिक के सामने ही निकालूंगा।
महाराज! मुझे कुछ साधनों की आवश्यकता है।
सैनिकों ने तुरन्त राजा श्रेणिक को सूचित किया।
अभय ने अँगूठी को लक्ष्य करके गोबर कुएँ में फेंका।।
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क्या साधन चाहिए तुम्हें?
बस, थोड़ा-सा गायो। का गोबर चाहिए।
गोबर सीधा अँगूठी पर गिरा, मिट्टी सहित अँगूठी तरन्त गाय का गोबर लाकर दिया गया।। गोबर में चिपक गई।
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बुद्धि निधान अभय कुमार इसके बाद अभय ने सूखे घास-फूंस मँगाकर कुएँ में डलवा दिये और आग लगा दी। आग की गर्मी से कुछ ही समय में गोबर सूख गया। अब अभय ने कहा
कुएँ को पानी से भर दिया जाय।
कुएँ में पानी भरा जाने लगा।
थोड़ी ही देर में कुआँ लबालब भर गया। सूखा | गोबर पानी के ऊपर तैरने लगा।
अभय ने सूखे गोबर को पानी से निकाल लिया और उसे तोड़कर अंगूठी राजा श्रेणिक को दे दी। राजा श्रेणिक आश्चर्य के साथ देखने लगे। वाह ! इतनी कम आयु में ऐसी तीव्र बुद्धि।
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महाराज श्रेणिक अभय की चतुराई से बहुत प्रभावित हुए। उसे अपने साथ रथ में बैठाकर राजसभा में ले आये। राजसभा में श्रेणिक ने अभय को अपने समीप ही आसन पर बैठाया और कहा
वत्स ! तुम राजगृह के प्रधानमंत्री बनने
के योग्य हो/तुम किसके पुत्र हो?
महाराज! मेरे पिता तो रामगृह के
गोपाल हैं। नगर में सबसे ऊँचा । श्वेत भवन उनका है। उसके कंगूरे
आसमान से बातें करते हैं।
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CHAR
GOGORO
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बुद्धि निधान अभय कुमार
अभय के शब्द सुनते ही श्रेणिक अतीत में खो गये। उन्हें नन्दा से कही हुई पुरानी बातें याद आ गईं।
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millionarओह! यह शब्द तो मैंने वेणा
तट में अपनी पत्नी नन्दा से
MON कहे थे। यह अवश्य ही CHASRADEDIO
नन्दा का पुत्र हैं।
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उसने एकदम भाव विखल हो अभय को सीने से लगा लिया।
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तुम मेरे पुत्र हो। कहाँ है मेरी पत्नी नन्दा?
पिताश्री ! माँ पड़ोस 55मके नन्दीग्राम में है।
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श्रेणिक अभय कुमार को लेकर बड़ी धूम-धाम से नन्दीग्राम पहुंचे और नन्दा को सम्मानपूर्वक अपने महल में ले आये।
अब तुम दोनों सुखपूर्वक मेरे पास रहो।
श्रेणिक ने अभय का विवाह अपनी बहन सुसेणा की पुत्री मल्लिका के साथ कर दिया और अभय को राजगृह का प्रधानमंत्री बना दिया।
समाप्त
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दो तोला मांस
बुद्धि निधान अभय कुमार एक बार राजा श्रेणिक ने विचार किया कि पूरे मगध देश में मांसाहार पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। अपने सभासदों का विचार जानने के लिए श्रेणिक ने एक प्रश्न किया।
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मनुष्य के लिए सस्ता, सुलभ और आरोग्यदायी भोजन कौन-सा है?
शाहकारी सामन्तों ने कहा
महाराज ! अन्न, फल आदि का भोजन आरोग्यदायी होने के साथ ही सस्ता और सबको
सुलभ भी है।
हाँ, महाराज, इनसे मनुष्य के विचार भी सात्त्विक रहते हैं।
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TITION
किन्तु मांसाहारी सामन्तों ने भिन्न मत व्यक्त किया। महाराज ! अन्न और फल कहाँ सस्ता है, और ना ही सबको सुलभ है। अन्न उपजाने के लिए किसान को कितना कठोर परिश्रम करना पड़ता है?
हाँ, महाराज, फिर खेती बाड़ी तो
पूर्णतः प्रकृति और भाग्य के - अधीन है, कितने जोखिम उठाने
पड़ते हैं किसान को।
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महाराज मांसाहार सबके लिये सस्ता है, सुलभ है। एक बाण से हिरण आदि का शिकार किया कि पूरे परिवार का पेट भर जाता है।
बुद्धि निधान अभय कुमार
"मुझे इसी समय महासामन्त से मिलना है, उन्हें जगाकर मेरे आने की खबर करो।"
चेहरे पर उदासी लाते हुए अभयकुमार बोला
लगभग १५ दिन बाद अभयकुमार आधी रात के समय रथ में बैठकर एक सामन्त के द्वार पर पहुँचा। द्वारपाल से कहा
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| सामन्तों के तर्क-वितर्क सुनकर राजा श्रेणिक ने मंत्री अभय कुमार की तरफ देखा
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क्यों अभय !
आपका क्या
विचार है ?
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महाराज ! मैं इस विषय में पूरी जानकारी करके फिर आपको उत्तर दे सकूँगा ?
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महामंत्री अभय के आने की सूचना पाते ही सामन्त हड़बड़ाकर उठा।
महामात्य ! अभी इस समय आप ?
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अचानक ही महाराज किसी गंभीर रोग से ग्रस्त हो गये हैं। राज वैद्य का कहना है-किसी मनुष्य के हृदय का दो तोला ताजा मांस चाहिये। महाराज की जीवन रक्षा के लिए आपको इतना सा कष्ट करना पड़ेगा, बदले में आप चाहें तो एक लाख स्वर्ण मुद्रायें ले सकते हैं?
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बुद्धि निधान अभय कुमार
सुनते ही सामन्त पसीना पसीना हो गया, उसकी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा।
अभय ने दो लाख स्वर्ण मुद्राओं का बक्सा अपने रथ में रखवाया और जाते-जाते बोला
मैं चलता हूँ किसी अन्य सामन्त के पास, आप निश्चिन्त होकर सोइये।
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FOODIO ED
महामात्य' 'जी' * मुझ पर कृपा करिये। राजगृह में और भी सामन्त हैं। उनका मांस ले लीजिये। इस कृपा के बदले में दो लाख स्वर्ण मुद्रायें आपको भेंट देता हूँ।
जैसी तुम्हारी इच्छा।
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इसी प्रकार अभय दूसरे मांसाहारी सामन्तों के घर पर गया और महाराज की जीवन रक्षा के लिये दो तोले हृदय का मांस मांगा, किन्तु कोई भी सामन्त अपना मांस देने को राजी नहीं हुआ, बदले में जान बचाने के लिए किसी ने दो लाख किसी ने तीन लाख स्वर्ण मुद्रायें अभय को भेंट की।
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बुद्धि निधान अभय कुमार
दूसरे दिन राजा श्रेणिक दरबार में आये। उन्हें स्वस्थ देखकर मांसाहारी सामन्तों को बड़ा आश्चर्य हुआ। अभय ने सारा धन राजसभा में सामन्तों के सामने रखकर कहा
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आज से पन्द्रह दिन पहले आप लोगों ने मांस को सस्ता और सुलभ आहार बताया ००० था। कल रात सिर्फ दो तोला मांस के लिए आपमें से किसी ने दो लाख, किसी ने
तीन लाख स्वर्ण मुद्रायें दी हैं। बताइये क्या मांस सस्ता है ?
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अभय ने सामन्तों और सभासदों से कहा
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जिस प्रकार आपको अपना शरीर और अपने प्राण प्यारे हैं, वैसे ही हर प्राणी को अपने प्राण, अपनी जान प्यारी है। किसी भी प्राणी के शरीर का मांस काटना उसके लिए कितना भयानक दुःखदायी है यह आप समझ चुके हैं, अब आप सोचें मांसाहार करना महापाप ही नहीं, दूसरों के लिए भयानक कष्टकारी और राक्षसी कृत्य भी है।
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मांस को सस्ता बताने वाले सामन्तों के सिर झुक गये।
अभय की युक्तियों से प्रभावित होकर सभी सामन्तों ने एक स्वर से स्वीकार किया
हम आज से माँसाहार और शिकार का त्याग करते हैं।
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बुद्धि निधान अभय कुमार
चतुर चोर
राजा ने बगीचे के चारों महाराज श्रेणिक ने रानी चेलना के लिये ओर कड़ा पहरा लगा बगीचे में एक खम्भे वाला सुन्दर महल | दिया। परन्तु दूसरे दिन बनवाया। उसमें आम के कुछ सदाबहार वृक्ष
सुबह देखा तो फिर थे। उन पर बारह महीने फल लगते थे। आम चोरी हो गये थे। एक दिन
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ऐसे चालाक चोर को तुरन्त पकड़ना चाहिये नहीं तो नगर में उत्पात मचा
देगा।
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आश्चर्य है! कल तो इस डाल पर आम लगे हुये थे? आज एक भी आम नहीं है जरूर किसी
नेचरा लिये हैं।
माली ने तुरन्त राजा को खबर की।।
राजा ने अभय कुमार को बुलाकर कहा
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ऐसी विचित्र चोरी पहले कभी देखी न सुनी! इतने पहरे में से भी चोर आम चुरा कर ले जाता है? इसका पता लगाओ।
उद्यान से लगी एक मांतग बस्ती है। आज रात भेष बदलकर बस्ती
में जाता हूँ शायद चोर 15(का कोई सुराग मिल जाय।
अभय कुमार वापस अपने महल में आकर सोचन लगा।
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बुद्धि निधान अभय कुमार
रात के समय अभय मातंग बस्ती के चौराहे पर पहुँचा। वहाँ बस्ती के लोग एकत्रित होकर किस्से कहानी सुनाकर मनोरंजन कर रहे थे। अभय उनके बीच बैठ गया। एक बूढ़े व्यक्ति ने उसे बैठा देखा तो चौंककर पूछा
जरूर। जरूर/
भाई तुम कौन हो? यहाँ क्या कर रहे हो?
बूढे से आज्ञा लेकर अभय कहानी सुनाने लगा।
बसन्तपुर नगर में एक कन्या राजा के बगीचे से प्रतिदिन पूजा के लिये फूल तोड़कर ले जाती थी। एक दिन माली ने उसे फूल तोड़ते पकड़ लिया।
फूलों की चोरी करती है। चल मैं तुझे कारागार की हवा खिलाऊँगा।
उसकी सुन्दरता को देखकर माली के मन में विकार आ गया। वह
अगर तू मेरी इच्छा पूरी कर दे तो मैं तुझे छोड़ दूँगा।
मैं एक परदेशी हूँ। रात बिताने के लिए आपकी संगत में आकर बैठ गया हूँ। अगर आप आज्ञा तो मैं भी एक किस्सा सुना दूँ।
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आगे से नहीं तोडूंगी इस बार मुझे छोड़ दीजिए।
बोला
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बुद्धि निधान अभय कुमार सुन्दरी पहले तो सकपकाई फिर साहस करके बोली
अभी मैं कुंवारी हूँ। कामदेव की पूजा करने जा रही हूँ। तुम्हारे स्पर्श से अशुद्ध हो जाऊँगी। हाँ! यह वचन देती हूँ कि विवाह होने पर पहली रात तुम्हारे पास आ जाऊँगी।
अशुद्ध होने वाली बात माली की समझ में आ गई, वह बोला
सुन्दरी ने उसे आश्वासन दिया और चल दी।
कुछ समय बाद सुन्दरी का विवाह विमल नामक युवक के साथ हो गया। मिलन की पहली रात्रि सुन्दरी ने अपने पति को माली वाली पूरी घटना बताई और आज्ञा माँगी। विमल अपनी पत्नी की स्पष्टता से बहुत प्रभावित हुआ उसने कहा
जाओ मैं तुम्हारे वचनपालन में बाधक नहीं बनूँगा परन्तु वापस लौटकर मुझे सब कुछ सत्य बता देना।
अपना वचन याद रखना।
प्राण देकर भी वचन का पालन करूँगी।
सुन्दरी सोलह श्रृंगार में सजकर, माली के घर की ओर चल दी। मार्ग में उसे दो चोर मिले। आभूषणों को देखकर उनका मन ललचा गया। उन्होंने सुन्दरी को रोककर कहा
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हमें तुम्हारे आभूषण चाहिये। परन्तु हम पर-स्त्री को स्पर्श नहीं करते। इसलिये स्वयं अपने आभूषण उतारकर हमें दे दो।
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बुद्धि निधान अभय कुमार
सुन्दरी निडर स्वर में चोरों से बोली
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भाई ! मैं किसी के वचन में बंधी हूँ। मुझे इसी रूप में जाना है जब वापस लौटूंगी तो आभूषण तुम्हें
जरूर दे दूंगी।
चोरों से पीछा छूटा तो मार्ग में एक नर भक्षी दैत्य मिल गया। उसने सुन्दरी से कहाही हे कोमलांगी ! मैं कई
दिनों से भूखा हूँ। आज मैं तुम्हें खाऊँगा।
सुन्दरी की निडरता से प्रभावित होकर चोरों ने उसका विश्वास करके, वापस आने का वचन लेकर छोड़ दिया।
सुन्दरी ने मीठे शब्दों में दैत्य से कहा
सुन्दरी माली के घर पहुंची और उसे अपने पुराने वचन की स्मृति दिलाई। माली को अपने ऊपर बड़ी ग्लानि हुई वह बोला
(हे दैत्यराज ! अगर मेरा शरीर
आपके काम आ जाये तो मेरा सौभाग्य ही होगा लेकिन अभी मुझे जाने दीजिये मैं किसी के
वचन में बँधी हूँ।
बहन ! मुझे क्षमा कर दो। मैं अपनी गन्दी भावना पर बहुत शर्मिन्दा हूँ। आप जैसी देवी की तो पूजा करनी चाहिये।
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दैत्य ने भी सुन्दरी की बात का विश्वास करके आगे जाने दिया।
माली ने सुन्दरी को आदर के साथ विदा कर दिया।
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बुद्धि निधान अभय कुमार वापसी में सुन्दरी दैत्य के पास पहुंची। अब सुन्दरी चोरों के पास पहुँची तो उसकी तुम जैसी सत्यनिष्ठ स्त्री का |
सत्यनिष्ठा देखकर चोरों का भी मन बदलने लगा
वह बोलेभक्षण करना घोर पाप है। लो भाई! तुम निर्भीक होकर जाओ। मैं आ गयी हूँ।
तुम जैसी सच्ची और वचन का पालन करने वाली स्त्री के आभूषण हम नहीं ले सकते। आज से तुम हमारी बहन हो।
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सुन्दरी ने वापस घर पहुँचकर अपने पति को || कहानी समाप्त करके अभय ने मातंगों से पूछासारी घटना सुना दी।
आप लोगों ने कहानी ध्यान से
सुनी? अब मुझे बताओ इनमें से (प्रिये ! तुम्हारी सच्चाई और
कौन श्रेष्ठ है? सुन्दरी, उसका | निर्भीकता की विजय हुई। मैं |
पति, दैत्य, माली, या चोर? तुम्हारी स्पष्टवादिता से
बहुत प्रसन्न हूँ।
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स्त्रियाँ तुरन्त बोल उठीं
युवकों ने कहा
सुन्दरी का साहस सर्वश्रेष्ठ है।
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बुद्धि निधान अभय कुमार
तभी एक व्यक्ति उठा और अभय से बोला
क्या वे चोर सर्वश्रेष्ठ नहीं हैं? जिन्होंने सरलता से प्राप्त लाखों रुपये के आभूषणों को त्याग दिया।
कोई भी पुरुष अपनी पत्नी को अन्य पुरुष के पास जाने की अनुमति नहीं देगा। सुन्दरी के पति का त्याग और विश्वास सर्वश्रेष्ठ है।
वृद्धों ने दैत्य को सर्वश्रेष्ठ बताया।
भूखा होने पर भी उसने सुन्दर, कोमलांगी स्त्री को नहीं खाया। दैत्य का त्याग प्रशंसा योग्य है।
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अभय उसका जबाव सुनकर चौंक गया। उसने सोचा
इतने लोगों की भीड़
में एक यही चोरों का पक्ष ले रहा है। बस, यही चोर है।
उस व्यक्ति का नामपता पूछकर अभय रात में ही वापस राजमहल में आ गया।
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बुद्रि निधान अभय कुमार
अगले दिन अभय ने उस मांतग को पकड़कर महल बुलवा लिया और फटकारा। मातंग अभय को। वहाँ देखकर पहचान गया और घबराहट में उसने अपना अपराध कबूल कर लिया।
मापा तुमने ही बगीचे में|
महामंत्री जी ! मुझे क्षमा करें। मैंने से आम चुराये हैं। अपनी गर्भवती पत्नी की इच्छा पूर्ण करने सच सच बताओ?
के लिये आम चुराये थे। मैं चोर नहीं हूँ।।
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अभय ने उससे पूछा
मैंने आकर्षणी विद्या द्वारा फलों की डाल
को अपनी तरफ आकर्षित कर लिया और , उस पर से आम तोड लिये छ
तुमने इतने कड़े पहरे में से आम | कैसे चुराये?
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अभय ने मातंग को महाराज श्रेणिक के सामने प्रस्तुत किया। श्रेणिक ने चोर को देखते ही मृत्यु दण्ड की सजा सुना दी। अभय ने श्रेणिक को सुझाव दिया।
महाराज ! मेरी सलाह है कि
आप पहले इस मातंग से दुर्लभ विद्या सीख लें फिर
इसे दण्ड दें। JOID
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बुद्धि निधान अभय कुमार
श्रेणिक को अभय की बात पसन्द आई। उन्होंने मातंग से आकर्षणी विद्या सीखना प्रारम्भ कर दिया। मातंग राजा के सामने नीचे बैठ गया और राजा को मंत्र पाठ कराने लगा। परन्तु राजा बार-बार मंत्र भूल जाते। उन्होंने गुस्से में मातंग से कहा
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तुम मुझे उचित ढंग से विद्या नहीं सिखा रहे हो?
श्रेणिक अभय का इशारा समझ गये। उन्होंने मातंग को सिंहासन पर बैठाया और स्वयं उसके सामने विनय के साथ नीचे खड़े हो गये। फिर उन्होंने मन्त्र दोहराया तो
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वाह ! अब मुझे एक ही बार में मंत्र पाठ हो गया।
विद्या सीखने से श्रेणिक प्रसन्न हो गये।
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मगधेश! गुरू का आसन सदैव शिष्य से ऊँचा होता है। शिष्य गुरू की विनय करके ही विद्या प्राप्त करता है।
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और उन्होंने मातंग को बहुत-सा धन देकर गरीबी से मुक्त कर दिया।।
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तुमने हमें विद्या सिखाई है। इसलिए तुम्हारा दर्जा गुरू का है और गुरू को दण्ड नहीं दिया जा सकता है।
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समाप्त
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बुद्धि निधान अभय कुमार
काल शौकरिक कसाई
राजगृह में काल शौकरिक कसाई रहता था। वह प्रतिदिन पाँच सौ भैसों का वध करता था।
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राजा श्रेणिक ने उसका हिंसा का धन्धा छुड़ाने| उस बात से राजा श्रेणिक का मन बहुत खिन्न हुआ। | के लिए बहुत प्रयत्न किये। यहाँ तक कि उसे | उन्होनें अभय कुमार से कहाप्राण दण्ड का भय दिखाया और एक गहरे सूखें कुएँ में डाल दिया। परन्तु वहाँ बैठकर तुम किसी भी प्रकार राजगृह में भी वह मिट्टी के भैंसे बनाकर लकड़ी के होने वाली इस हिंसा को रोको तिनके से उनकी गर्दन तोड़कर सोचता
और काल शौकरिक कसाई का
हृदय बदलो।
महाराज ! काल शौकरिक की नस-नस में हिंसा का संस्कार समा चुका है। अब वह तो
नही बदल पायेगा परन्तु उसके पुत्र सुलस AAWAY को करुणा के संस्कार देकर हिंसा की इस
HAM परम्परा को बंद करने का प्रयास करता हूँ। वाह ! मैंने पाँच
सौM भैंसे मार दिये।
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उसने सुलस को अहिंसक बनाने
के लिए एक योजना बना ली।
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बुद्धि निधान अभय कुमार
अपनी योजनानुसार अभय ने सुलस से मैत्री कर ली। अभय सुलस के घर आने जाने लगा वह उससे दया धर्म और करुणा की बातें करता। भगवान महावीर के उपदेशों के विषय में बताता।
मित्र ! तुम्हारी बातें सुनकर मुझे बड़ा आनन्द आता है।
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धीरे-धीरे सुलस पर अभय की संगत का असर होने लगा। उसने वधशाला जाना बन्द कर दिया। उसके हृदय में मूक जानवरों के प्रति कळणा उत्पन्न हो गई। वह पूरी तरह अहिंसा धर्म का पालन करने लगा।
एक दिन काल शौकरिक को एक भयानक रोग हो गया। वह वेदना से चीखने चिल्लाने लगा। सुलस ने वेदना कम करने के लिए पिता के शरीर पर सुगन्धित शीतल चन्दन आदि का लेप लगाया परन्तु पीड़ा कम नहीं हुई।
निराश सुलस अभय के पास पहुंचा। पिता की दशा बताकर शान्ति का उपाय पूछा। अभय ने कहा
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सुलस तुम्हारे पिता ने जीवन भर हिंसायें की हैं। यह उसी का परिणाम है। उन्हें शीतल चन्दन शान्ति नहीं पहुंचा पायेगा बल्कि गधे और ऊंट का कर्कश स्वर सुनवाओ कक्ष में दुर्गन्ध कर दो।
इसी से उन्हें शान्ति मिलेगी।
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बुद्धि निधान अभय कुमार
कुछ दिनों बाद काल शौकरिक की मृत्यु हो गई। सुलस के जाति बन्धु उसे उसके पिता का स्थान लेने के लिए विवश करने लगे। उन्होंने सुलस के घर के सामने एक भैंसा बांध दिया और उसके हाथ में तलवार देकर कहा
इस भैंसे को मारकर अपने पिता का पद ग्रहण करो।
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भैंसे को मारना तो हिंसा है। हिंसा महापाप र है। मैं यह घोर पापकर्म
नहीं करूंगा।
अजीविका करने के लिए पाप) और पुण्य का विचार नहीं किया जाता। तुम अपनी कुल-परम्परा का पालन करो।
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आप लोग मुझे पाप करने पर विवश कर रहे हैं। इस पाप के फल स्वरूप मुझे दुःख और पीड़ा भोगनी होगी।
दुःख, वेदना की चिन्ता मत कर। दुःख हम तुम्हारे साथ बाँट लेंगे।
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बुद्धि निधान अभय कुमार
सुलस ने चारों ओर देखा और खड्ग का प्रहार अपनी जंघा पर किया। जंघा से रक्त का फुव्वारा छूट पड़ा।
सुलस ने व्यंगपूर्ण स्वर में कहा
ओह ! बहुत दर्द हो रहा है। आप सब लोग मेरा दर्द बाँटों ।
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DODACIDOL
हम तुम्हारा दर्द कैसे बाँट सकते हैं? जख्म तुम्हें हुआ है तो दर्द भी तुम्हें ही भोगना होगा।
तब तक अभय को इस घटना की सूचना मिल चुकी थी वह आया। उसने सुलस के घाव पर मलहम पट्टी की और बोला
वाह ! एक क्षण में ही बदल गये ? अभी तो साथ में दर्द बाँटने का विश्वास दिला रहे थे। अब मैं तुम लोगों की बातों में आकर हिंसा नहीं करूँगा।
मित्र ! वास्तव में तुम्हारे अन्दर अंहिसा के मार्ग पर चलने का साहस है।
इस घटना के बाद सुलस ने अभय के कहने पर श्रावक धर्म ग्रहण कर लिया। अभय ने अपनी बुद्धि से एक कसाई के पुत्र को अहिंसक बना दिया।
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समाप्त
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