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बुद्धि निधान अभय कुमार
अभय ने अपनी माँ के विचारों का मतलब समझ लिया ।
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जन्दा को अपने पुत्र की विलक्षण बुद्धि पर विश्वास था। उसने अभय के साथ चलने की स्वीकृति दे दी।
ठीक है माँ । हम सीधे राजगृह न जाकर वहीं पास के किसी ग्राम में रुकेंगे और वहाँ कुछ ऐसा काम करेंगे कि पिताजी स्वयं चलकर आयें और हम दोनों को ही सम्मानपूर्वक राजगृह ले जायें /
अभय कुमार और नन्दा कई दिन की यात्रा के बाद राजगृह के समीप नन्दीग्राम में पहुँचे।
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माता को साथ लेकर अभय एक अच्छी धर्मशाला में आकर ठहर गया। नहा-धोकर अच्छे कपड़े पहनकर वह गांव की तरफ निकला।
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वहाँ भीड़ क्यों लगी है ? चलकर देखना
चाहिए।
माँ, हम कुछ दिन यहीं रुकेंगे।
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