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बुद्धि निधान अभय कुमार बेटा! उनका नाम, पता तो मुझे भी नहीं । यह सुनकर विलक्षण बुद्धि का धनी अभय एकदम मालूम। किंतु उन्होंने यहाँ से जाते समय कहा | | उछल पड़ा। था कि मैं राजगृह का गोपाल हूँ। नगर में सबसे विशाल श्वेत भवन मेरा घर है, जिसके सोने के
माँ! क्या तू नहीं समझी, कंगूरे आसमान से बातें करते हैं।
पिताजी ने संकेतों में सब
कुछ तो बता दिया।
वह कैसे?
माँ! 'गो' कहते हैं पृथ्वी को, उसका पालन करने वाला गोपाल; अर्थात् नगर का राजा। विशाल श्वेत
भवन आकाश से बातें करते कंगूरे यह सब राजमहल के चिन्ह हैं। अवश्य ही मेरे पिताजी
राजगृह नगर के राजा होंगे।
कर
नन्दा चुप होकर अभय के विश्लेषण पर विचार करने लगी।।
माँ! क्या सोच रही हो? पिताजी का परिचय मिल गया। अब हम उनके पास चलेंगे।
बेटा! तेरे पिता यदि राजगृह के राजा हैं तो मैं उनकी रानी हूँ। उनका
कर्त्तव्य है कि मुझे सम्मानपूर्वक ले जायें।
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