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________________ बुद्धि निधान अभय कुमार सुन्दरी निडर स्वर में चोरों से बोली co भाई ! मैं किसी के वचन में बंधी हूँ। मुझे इसी रूप में जाना है जब वापस लौटूंगी तो आभूषण तुम्हें जरूर दे दूंगी। चोरों से पीछा छूटा तो मार्ग में एक नर भक्षी दैत्य मिल गया। उसने सुन्दरी से कहाही हे कोमलांगी ! मैं कई दिनों से भूखा हूँ। आज मैं तुम्हें खाऊँगा। सुन्दरी की निडरता से प्रभावित होकर चोरों ने उसका विश्वास करके, वापस आने का वचन लेकर छोड़ दिया। सुन्दरी ने मीठे शब्दों में दैत्य से कहा सुन्दरी माली के घर पहुंची और उसे अपने पुराने वचन की स्मृति दिलाई। माली को अपने ऊपर बड़ी ग्लानि हुई वह बोला (हे दैत्यराज ! अगर मेरा शरीर आपके काम आ जाये तो मेरा सौभाग्य ही होगा लेकिन अभी मुझे जाने दीजिये मैं किसी के वचन में बँधी हूँ। बहन ! मुझे क्षमा कर दो। मैं अपनी गन्दी भावना पर बहुत शर्मिन्दा हूँ। आप जैसी देवी की तो पूजा करनी चाहिये। tar PRAYE El दैत्य ने भी सुन्दरी की बात का विश्वास करके आगे जाने दिया। माली ने सुन्दरी को आदर के साथ विदा कर दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002806
Book TitleBuddhinidhan Abhaykumar Diwakar Chitrakatha 006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
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