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बुद्धि निधान अभय कुमार इसके बाद अभय ने सूखे घास-फूंस मँगाकर कुएँ में डलवा दिये और आग लगा दी। आग की गर्मी से कुछ ही समय में गोबर सूख गया। अब अभय ने कहा
कुएँ को पानी से भर दिया जाय।
कुएँ में पानी भरा जाने लगा।
थोड़ी ही देर में कुआँ लबालब भर गया। सूखा | गोबर पानी के ऊपर तैरने लगा।
अभय ने सूखे गोबर को पानी से निकाल लिया और उसे तोड़कर अंगूठी राजा श्रेणिक को दे दी। राजा श्रेणिक आश्चर्य के साथ देखने लगे। वाह ! इतनी कम आयु में ऐसी तीव्र बुद्धि।
(1991B
महाराज श्रेणिक अभय की चतुराई से बहुत प्रभावित हुए। उसे अपने साथ रथ में बैठाकर राजसभा में ले आये। राजसभा में श्रेणिक ने अभय को अपने समीप ही आसन पर बैठाया और कहा
वत्स ! तुम राजगृह के प्रधानमंत्री बनने
के योग्य हो/तुम किसके पुत्र हो?
महाराज! मेरे पिता तो रामगृह के
गोपाल हैं। नगर में सबसे ऊँचा । श्वेत भवन उनका है। उसके कंगूरे
आसमान से बातें करते हैं।
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GOGORO
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