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बुद्धि निधान अभय कुमार
श्रेणिक को अभय की बात पसन्द आई। उन्होंने मातंग से आकर्षणी विद्या सीखना प्रारम्भ कर दिया। मातंग राजा के सामने नीचे बैठ गया और राजा को मंत्र पाठ कराने लगा। परन्तु राजा बार-बार मंत्र भूल जाते। उन्होंने गुस्से में मातंग से कहा
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तुम मुझे उचित ढंग से विद्या नहीं सिखा रहे हो?
श्रेणिक अभय का इशारा समझ गये। उन्होंने मातंग को सिंहासन पर बैठाया और स्वयं उसके सामने विनय के साथ नीचे खड़े हो गये। फिर उन्होंने मन्त्र दोहराया तो
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वाह ! अब मुझे एक ही बार में मंत्र पाठ हो गया।
विद्या सीखने से श्रेणिक प्रसन्न हो गये।
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मगधेश! गुरू का आसन सदैव शिष्य से ऊँचा होता है। शिष्य गुरू की विनय करके ही विद्या प्राप्त करता है।
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और उन्होंने मातंग को बहुत-सा धन देकर गरीबी से मुक्त कर दिया।।
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तुमने हमें विद्या सिखाई है। इसलिए तुम्हारा दर्जा गुरू का है और गुरू को दण्ड नहीं दिया जा सकता है।
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