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अध्याय-६ सार्धशतकचूर्णि
सुभद्राचौपाई
सुमतिनाहचरिय
सुरसुन्दरीचौपाई
११५ मुनिचन्द्रसूरि (यशोभद्रसूरि-नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य) संस्कृत, वि० सं० ११७०, जिनरत्नकोश, पृ० ४३५, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ३३२. विनयरत्न (मुनिसार के शिष्य), मरु-गूर्जर, वि० सं० १५४९, शीतिकंठमिश्र, हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, मरु-गूर्जर, भाग १, पृ० ४९७. सोमप्रभसूरि (विजयसिंहसूरि के शिष्य) प्राकृत, जिनरत्नकोश, पृ० ४४९. मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृ० ५५-६५, भाग ३, पृष्ठ ३६२ और आगे. सोमप्रभसूरि (विजयसिंहसूरि के शिष्य) जिनरत्नकोश, पृ० ४४१, प्रकाशित. मालदेव (भावदेवसूरि के शिष्य), मरु-गूर्जर, जैनगूर्जर कविओ, भाग २, पृ, ५५-६५, भाग ३, पृ० ३६२ और आगे वादिदेवसूरि (मुनिचन्द्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १३वीं पूर्वार्ध, प्रकाशित. रत्नप्रभसूरि (वादिदेवसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १३वीं, देसाई, जैनसाहित्यनो..., कंडिका, ४८३.. विद्याकरगणि (मानभद्रसूरि के शिष्य), संस्कृत, वि० सं० १३६८, जैनसाहित्यनो..., कंडिका ६३०.
सूक्तिमुक्तावली अपरनाम सिन्दूरप्रकर स्थूलभद्रधमाल, पद्य १०७
स्याद्वादरत्नाकर (प्रमाणनयतत्त्वलोक की टीका) स्याद्वादरत्नाकरलघुटीका
हैमव्याकरणवृत्तिदीपिका
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