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अध्याय-७
१६१
में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु- परम्परा का उल्लेख किया है, ६ जो इस प्रकार है।
:
चन्द्रप्रभ
1
देवसूरि
1
तिलकप्रभसूर
I
वीरप्रभसूर
1
अजितप्रभसूरि (वि०सं० १३०७ / ई० सन् १२५१ में शांतिनाथचरित के रचनाकार)
पुण्डरीकरित
पूर्णिमापक्षीय चन्द्रप्रभसूरि की परम्परा में हुए रत्नप्रभसूरि के शिष्य कमलप्रभसूरि ने वि०सं० १३७२/ई०स० १३१६ में उक्त कृति की रचना की। कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का इस प्रकार विवरण दिया है :
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चन्द्रप्रभसूर
1
चक्रेश्वरसूर
1
त्रिदशप्रभसू
1
धर्मप्रभसूर
I
अभयप्रभसूर
I
रत्नप्रभसूर
I
कमलप्रभसूरि (वि०सं० १३७२ / ई० सन् १३१६ में
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