Book Title: Bhuvandipak
Author(s): Bacchu Sharm
Publisher: Gangavishnu Shrikrushnadas

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Page 25
________________ ( १२ ) भुवनदीपकः । ज्ञशनी बुधशनैश्वरौ सुहृदौ, अर्कचन्द्रकुजाः सदा मित्राणि, गुरुसितौ परस्परं पूज्यवर्गों । परमित्यस्य सर्वत्र सम्बन्धः सैंहिकेयस्य कथ्यते इत्यस्याग्रिमश्लोके सम्बन्धः । इति अन्योन्यमित्रशद्वारं तृतीयम् ॥ १६ ॥ १७ ॥ अर्थ - अब परम वैर और परम मैत्री कहते हैं- राहु और रवि बृहस्पति और शुक्र, चन्द्रमा और बुब, सूर्य और शनि इन दो दो ग्रहों को आपस में महावैर है । अब परम मित्र कहते हैं - बुध, शनि, मंगल, चन्द्रमा, और रवि, ये सर्वदा परस्पर परम मित्र हैं और बृहस्पति तथा शुक सर्वदा आपसमें पूज्यभाव रखते हैं ॥ १६ ॥ १७ ॥ इति शत्रु मित्रद्वारम् ॥ ३ ॥ यबुधस्य ग्रहस्योच्चं राहोस्तदगृहमुच्यते ॥ यद्बुधस्य गृहं राहोस्तदुच्चं ब्रुवते बुधाः ॥ १८ ॥ सं० टी० - अथ राहूच्चादिद्वारमाह- बुधस्य यदुखं कन्यालक्षणं राहोस्तत्सामान्यं गृहमूचिरे । तथा यच्च बुधस्य सामान्यं मिथुनं तद्राहरुच्चमिति बुधाः पण्डिताः ब्रुवते कथयन्ति ॥ १८ ॥ अर्थ - अब चतुर्थद्वार में राहुके गृहादिक कहते हैं - जो बुधका उच्च (कन्या ) कहा है, वह राहुका गृह है और जो बुधका गृह (मिथुन) है, वह राहुका उच्च है, ऐसा पंडितलोग कहते हैं ॥ १८ ॥ "Aho Shrut Gyanam"

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