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(८०) भुवनदीपकः।
सं० टी०-अत्रैव विशेषमाह-"प्रयाति सहजस्थानमसौ यस्यां शुभग्रहः । आयाति पथिकस्तत्र तस्यामेव नरो गृहम् ॥ प्रयातीति आक्षेपः । आगमनपृच्छालग्नाद्यादि केंद्रतश्चतुर्थस्थानाद्वा द्वितीयेवा पञ्चमे चैकादशे वा स्थाने सौम्यग्रहोऽभ्येति तदा गमनं न भवेत्, यस्यां वा घटिकायां खेटःकुरो वा शुभो वा अभ्येति प्राप्नोति तदा तस्यां घटिकायां तदागमस्तस्य पथिकस्यागमनं वाच्यम्। आयियासुम् आगमनशीलं ग्रहं दृष्ट्वा निःशंकमेतद्वाच्यामिति भावः ॥ १११ ॥
अर्थ-विदेश गयाहुआ पुरुषका आगमन लिखते हैं-प्रश्नकालमें केन्द्रसे द्वितीय स्थानोंमें अर्थात् दूसरे, पांचवें, आठवें और ग्यारहवें स्थानोंमें यदि ग्रह प्राप्त हों तो उसी समयमें विदेश गयाहुआ पुरुषका आगमन कहना । अथवा केन्द्रप्राप्त ग्रहको केन्द्रसे द्वितीय (२-५-८-११) स्थानोंमें प्राप्त होनेका समय देखकर निःसन्देह आनेका समय कहना अर्थात् यदि (२-५-८-११ ) इन स्थानोंमें ग्रह प्राप्त हों तो शीघ्रही विदेशगत पुरुषका आगमन कहना और यदि केन्द्रही (१-४-७-१० ) में ग्रह हों परन्तु ( २-५-८-११ ) इन स्थानोंमें आनेवाले हों तो जितने दिनोंमें वे ग्रह इन स्थानोंमें आवेंगे उतनही दिनोंमें विदेश गयाहुआ पुरुषकाभी आना होगा ऐसा कहना चाहिये ॥ १११॥
"Aho Shrut Gyanam"