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संस्कृतटीका-भाषाटीकासमेतः। (८७) सं०टी०-अथ चौर्यादिस्थानद्वारमाह-एवं पूर्वोक्तप्रकारेण इहःचौर्याय गच्छामीति प्रश्ने अत्रापि मूर्ती वर्तमानः क्रूरग्रहः शुभावहः शोभनकर्ता तथा प्राग्वत् अपि प्रश्ने क्रूरग्रहस्य दृष्टिः शुभावहा कदापि न भवतीत्यर्थः ॥ १२० ॥
अर्थ-अब अट्ठाईसवें द्वारमें चौरादिकोंका प्रश्न विचार लिखते हैं, यदि कोई ऐसा प्रश्न करे कि, मैं चोरी करनेको जाऊँगा लाभ होगा या नहीं ? ऐसे प्रश्नमें लग्नमें पापग्रह हो तो शुभ ( लाभादि ) होता है परन्तु यहाँपर भी लग्नपर पापग्रहकी दृष्टि कदापि शुभ देनेवाली नहीं होती ॥ १२० ॥ विवादे शत्रुहनने रणे संकटके तथा ॥ क्रूरे मूतों जयो ज्ञेयः क्रूरदृष्टया पराजयः।१२१॥ ___ सं० टी०-विवादे, शत्रुहनने, रणे युद्धे, संकटके एतेषु सर्वेषु प्रश्नेषु यदि मूर्ती क्रूरग्रहो भवति तदा जयो वाच्यः । क्रूरदृष्टया पराजयो वक्तव्य इति ॥ १२१॥
अर्थ-विवादमें, शत्रुको मारनेमें, युद्धमें, संकट ( आवश्यक विवाहयात्रादि ) में भी पापग्रह लग्नमें हो तो जय होती है और प्रश्नलग्नपर पापग्रहकी दृष्टि होय तो पराजय होती है ।। १२१ ॥
"Aho Shrut Gyanam"