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भुवनदीपकः ।
अर्थ - अब चौबीसवें द्वारमें विदेश गये हुए मनुष्य की स्थिति लिखते हैं-यदि कोई ऐसा प्रश्न करे कि, अमुक पुरुष विदेश गया सो घर नहीं आया है, क्या कहीं बँधा हुआ है या मर गया ? ऐसे प्रश्नमें यदि प्रश्न लग्न में पापग्रह हो तो वह मारा नहीं गया है और बन्धनमें भी नहीं है अर्थात् कुशलसे है, ऐसा कहना चाहिये ॥ १०७ ॥ सप्तमगोऽष्टमगो वा चेत्क्रूरस्तद्धतोऽथ बद्धो वा ॥ मूर्ती च सप्तमेऽपि च यद्वा लग्नेऽष्टमे च भवेत् १०८ क्रूरस्तदाऽसौ पुरुषोबद्धश्च हतश्च मुच्यते च परम् ॥ दीप्तत्वाद्विहितमिदं व्याख्यानं क्रूरविषयमिह १०९
सं० टी० - अत्रैव विशेषमाह - सप्तमेऽष्टमे वा स्थाने यदि क्रूर ग्रहो भवति तदा बद्धो हतो वा मृत इति वाच्यम् । तथा मूर्ती वा सप्तमेऽपि च स्थाने यदि क्रूरस्तदा वाच्यं मारितो बद्धो वेति । लग्नेऽष्टमे क्रूर ग्रहो भवति मृतो बद्धश्च भवेत् । अथ मूर्ती अष्टमस्थाने यदि क्रूर ग्रहो भवति तदाऽप्येवम् ॥ १०८ ॥ ॥ १०९ ॥ इति दीप्तपृच्छाद्वारं चतुर्विंशम् ॥ २४ ॥
अथ - इसी प्रश्न में विशेष लिखते हैं- कि, प्रश्नलग्न से सप्तम या अष्टम स्थान में यदि पापग्रह हो तो मरण वा बन्धन कहना, अथवा लग्न और सप्तम इन दोनों में पापग्रह हों या लग्न और अष्टम इन दोनों स्थानों में पापग्रह हों तो वर्तमान कालमें बन्धन या
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