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(५२) भुवनदीपकः ।
अर्थ-पूर्वश्लोकमें क्रूराक्रान्त (पापपीडित ) जो कहा है, उसको दृष्टांत सहित दिखाते हैं-पापग्रहोंके साथ युद्धमें हारा हुआ ग्रहको क्रूराक्रान्त (पापपीडित ) जानना, जैसे राहुके समीप सूर्य अर्थात जैसे राहुके साथ सूर्य नष्टकिरण होते हैं, वैसेही पापग्रहोंसे पराजित ग्रह विनष्ट होजाता है ।। ६८ ॥ पूर्णया दृश्यते दृष्टया क्रूरदृष्टः स उच्यते ॥ प्रविविक्षुः प्रविष्टो वा सूर्यराशौ विरश्मिकः॥६९||
सं० टी०-पूर्णयेति । यो ग्रहः करग्रहेण संपूर्णदृष्टया दृश्यते स क्रूरदृष्ट उच्यते तथा सूर्यमंडले प्रवेष्ठुकामः प्रविष्टो वा भवति यो ग्रहः सोऽस्तत्वादिरश्मिक उच्यते ॥ ६९ ॥
अर्थ-जो ग्रह पापग्रहोंकी पूर्णदृष्टि से देखा जाता हो सो क्रूरदृष्ट कहाजाता है और सूर्य जिस राशिके हों उसराशिमें जानेवाला या उसमें प्रविष्ट जो ग्रह सो विरश्मि ( अस्त ) कहाजाता है ॥ ६९॥ लग्नाधिपे विनष्टे स्याद्विनष्टावयवः पुमान् ॥ विनष्टजातिवर्णश्च शुभाकारो विपर्यये ॥ ७० ॥ __ सं० टी०-अथ विनष्टग्रहवलम् । लग्नाधिपे इति । लग्नाधिप यदि चतुःप्रकाराणां प्रागुक्तानां मध्ये अन्यतरप्रकारेण विनष्ट भवति तदा प्रच्छकस्य शरीरं विनष्टं वाच्यम् । जन्मकाले व
"Aho Shrut.Gyanam"