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संस्कृतटीका-भाषाटीकासमेतः। (५९) सं० टी०-अथ लाभकालमाह-लग्नाधिपतिलब्धो ग्राहकों लाभस्यैकादशस्याधिपतिर्दायको भवति परं यदि लग्नाधिपतेः संयोगो लाभाधीशेन भवति तदैव लाभः स्यादिति॥८॥
अर्थ-अब लाभ कब होगा, इसका विचार लिखते हैं-लग्नका स्वामी लेनेवाला होता है और ग्यारहवें स्थानका स्वामी देनेवाला होता है, अब इन दोनों लग्नेश और एकादशेशका जब योग हो, अर्थात् ये जब एक स्थानमें होजाँय तब लाभ करते हैं ॥ ८ ॥ भवति परं लाभकरस्तदैव यदि भवति चंद्रहग्लाभे। योगाः सर्वेऽप्यफलाश्चंद्रमृते व्यक्तमवेतत् ॥८१ ॥ ___ सं०टी०-विशेषमाह-पूर्वश्लोकोक्तयोर्लग्नाधिपतिलाभाधिपयोयोगे सति यदि तत्र चन्द्रदृष्टिर्न भवेत् तदा ते राजयोगादयोऽप्यफला भवंति निर्वीर्यत्वादिति ॥ ८१ ॥ ___ अर्थ-अब पूर्वकथित योगमें विशेष लिखते हैं-कि, लग्नेश और एकादशेशका योग लाभकारक तभी होता है जब कि, ग्यारहवें भावको चन्द्रमा देखता हो. कारण यह है कि, चन्द्रमा विना सभी राजयोगादिक विफल होजाते हैं, यह प्रसिद्ध है ॥ ८१ ॥ पण्याधीशेनैवं कर्मेशेनैव निवृत्त्यधीशेन ॥ मृत्युपतिना च योगो लग्नाधीशस्य वक्तव्यः ॥८२
"Aho Shrut Gyanam"