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(२२) भुवनदीपकः । गिकवलमेतद्वलसाम्ये स्यादधिकबलचिंता ॥ " तत्र जीवास्त्रिधा ॥२८॥ __ अर्थ-प्रश्नद्वारा धातु, मूल और जीवज्ञान कहते हैं-यदि प्रश्न समयमें शनि, चन्द्रमा, राहु, मङ्गल इनमें कोई बली होकर लग्नको देखे या युक्त हो तो धातुचिंता जाननी, सूर्य और शुक्र हों तो मूलचिंता, बृहस्पति और बुध हों तो जीवचिंता कहनी चाहिये, ऐसा महान् बुद्धिमानोंने कहा है ॥ २८ ॥
द्विपदौ भार्गवगुरू भौमाौं च चतुष्पदौ ॥ पक्षिणौ बुधसौरी च चन्द्रराहू सरीसृपौ॥२९॥ सं० टी०-तत्रापदद्विपदचतुष्पदादिज्ञानमाह-द्विपदौ इति । भार्गवगुरू द्विपदौ । कोऽर्थः-द्विपदीचन्तां कथयतः । अथवा वस्तुचौरज्ञाने द्विपद इति, सर्वत्र ज्ञाने विचारणीयम् । मङ्गलादित्यौ द्वौ चतुष्पदौ प्राग्वत् । बुधशनी खगौ पक्षिणी भवतः। चन्द्रराहू सरासपा सपों, अपदावात शेषः। प्राग्वादात चिन्त्यौ ॥ २९॥ ___ अर्थ-पूर्वकथितानुसार जीवचिंता ज्ञात होनेसे द्विपदादि ज्ञानार्थ ग्रहोंकी द्विपदादि संज्ञा कहते हैं-शुक्र और बृहस्पति द्विपदसंज्ञक हैं, मंगल और रवि चतुष्पदसंज्ञक हैं, बुध और शनि पक्षीसंज्ञक हैं,
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