Book Title: Bhuvandipak
Author(s): Bacchu Sharm
Publisher: Gangavishnu Shrikrushnadas
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संस्कृतटीका-भाषाटीकासमेतः। (२५) सं० टी०--अथ ग्रहाणां वर्णस्वरूपमाह-रक्तवर्ण इति । भौमो रक्तवर्णः। धिषणो बृहस्पतिः कनकद्युतिः स्वर्णकांतिः । बुधः शुकपिच्छतमः नीलकान्तिः । उष्णगुः सूर्यो गौरकांतिः ॥ ३२ ॥ मंदाराकस्य मंदारः कल्पवृक्षस्तदभावे अर्कपुष्प इव कांतिः । अनुष्णगुश्चन्द्र इति शेषः । कविः शुक्रः अत्यन्तधवल: श्वेतः । शनिराहू कृष्णवर्णी अतिश्यामो इति ॥ ३३ ॥ __ अर्थ-अब स्वरूप जाननेके लिये ग्रहोंका स्वरूप कहते हैं-मंगलका रक्त वर्ण, बृहस्पतिका सुवर्णके सदृश वर्ण, बुधका शुकपक्षीके पक्षसम नील वर्ग, सूर्यको गौरकांति, चन्द्रमाकी पारिजात पुष्पके सदृश या आकके फूल सदृश कांति, शुक्रका अति शुक्लवर्ण, राहु और शनि कृष्ण वर्ण कहे गये अर्थात् जो ग्रह बली होकर लग्नको देखे या लग्नमें हो, उसका वर्ण उस मनुष्यका कहना ॥ ३२ ॥ ३३ ॥ अवनीशो दिनमणिस्तपस्वी रोहिणीप्रियः॥ स्वर्णकारः क्षितेः पुत्रो ब्राह्मणो रोहिणीभवः॥३४॥ वणिग्गुरुः कविर्वैश्यो वृषलः सूर्यनंदनः ।। सैंहिकेयो निषादश्च सूत्रकाष मनाया।
"Aho Shrut Gyanam'

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